डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी जयंती को सेवा संकल्प के रूप में मनाया 

इंदौर । भारतीय जनता पार्टी जिला अध्यक्ष डॉ. राजेश सोनकर, वृक्षारोपण महाअभियान प्रभारी महेन्द्र ठाकुर ने बताया कि प्रदेश संगठन के निर्देशानुसार डॉ. मुखर्जी की पुण्यतिथि बलिदान दिवस से जन्मजयंती 6 जुलाई तक जिले के सभी बूथों पर वृक्षारोपण अभियान का पखवाडा चलाया जा रहा है। इसी अभियान के अंतर्गत आज जिले के वरिष्ठ नेताओं के नेतृत्व में वृहद स्तर पर पौधारोपण अभियान चलाया गया।
जिले की सभी विधानसभाओं के 15 मण्डलों के 954 बूथों पर प्रभारियों के माध्यम से वृहद स्तर पर पौधा रोपण अभियान चलाया जायेगा जिसमे फलदार, ऑक्सीजन देने वाले, जल्दी बढ़ने वाले पौधे विशेष रूप से लगाये गये और उनके बड़े होने तक समुचित देखभाल की व्यवस्था भी की गई।
पौधारोपण अभियान की शुरुआत पं. दीनदयाल उपाध्याय, डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी और भारत माता के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलित कर जिला अध्यक्ष डॉ. राजेश सोनकर, जिला पंचायत अध्यक्ष और भाजपा प्रदेश महामंत्री सुश्री कविता पाटीदार, प्रदेश उपाध्यक्ष जीतू जिराती, मधु वर्मा, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य राधेश्याम यादव, संस्कार भारतीय क्षेत्रीय संगठन मंत्री प्रमोद झा ने ग्राम पिगडम्बर स्थित खलीफा फार्म हाउस पर 85 महापुरूषों के नाम पर 85 प्र्रजातियों के अलग-अलग तरह के पौधे लगाकर की।
जिले के 954 बूथों की 312 ग्राम पंचायतों और 8 नगर पंचायतों में आज पौधोरोपण अभियान चलाया गया
डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की जयंती के अवसर पर संबोधित करते हुए भाजपा जिला अध्यक्ष डॉ. राजेश सोनकर ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी सेवा ही संकल्प के सुत्र पर चलते हुए आज विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है और हमारे पितृ पुरूष डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के बताये हुए मार्ग पर चलते हुए राष्ट्र सर्वोपरि सिद्धांत को मानना है और सेवा को ही सर्वोपरि रखते हुए संगठन के निर्देशानुसार करर्णीय कार्यो को करना है और हमारी यही विशेषता हमें अन्य संगठनों से अलग पहचाना दिलाती है।

आप सभी कार्यकर्ताओं ने पुरे पखवाड़े में डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस से लेकर आज जयंती तक पूरे पखवाडे में प्रदेश नेतृत्व में जो भी करर्णीय कार्य दिये थे उन्हें योजनाबद्ध तरिके से हम सबने पूरा करने का पूर्ण प्रयास किया है इसके लिये आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार।
डॉ० श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने स्वेच्छा से अलख जगाने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया। डॉ० मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धान्तवादी थे। मुस्लिम लीग की राजनीति से बंगाल का वातावरण दूषित हो रहा था। वहाँ साम्प्रदायिक विभाजन की नौबत आ रही थी। साम्प्रदायिक लोगों को ब्रिटिश सरकार प्रोत्साहित कर रही थी। ऐसी विषम परिस्थितियों में उन्होंने यह सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाया कि बंगाल के हिन्दुओं की उपेक्षा न हो। अपनी विशिष्ट रणनीति से उन्होंने बंगाल के विभाजन के मुस्लिम लीग के प्रयासों को पूरी तरह से नाकाम कर दिया। 1942 में ब्रिटिश सरकार ने विभिन्न राजनैतिक दलों के छोटे-बड़े सभी नेताओं को जेलों में डाल दिया।
प्रदेश महामंत्री सुश्री कविता पाटीदार ने संबोधित करते हुए कहा कि डॉ० मुखर्जी इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से हम सब एक हैं। इसलिए धर्म के आधार पर वे विभाजन के कट्टर विरोधी थे। वे मानते थे कि विभाजन सम्बन्धी उत्पन्न हुई परिस्थिति ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से थी। वे मानते थे कि आधारभूत सत्य यह है कि हम सब एक हैं। हममें कोई अन्तर नहीं है। हम सब एक ही रक्त के हैं। एक ही भाषा, एक ही संस्कृति और एक ही हमारी विरासत है। परन्तु उनके इन विचारों को अन्य राजनैतिक दल के तत्कालीन नेताओं ने अन्यथा रूप से प्रचारित-प्रसारित किया। बावजूद इसके लोगों के दिलों में उनके प्रति अथाह प्यार और समर्थन बढ़ता गया। अगस्त, 1946 में मुस्लिम लीग ने जंग की राह पकड़ ली और कलकत्ता में भयंकर बर्बरतापूर्वक अमानवीय मारकाट हुई। उस समय कांग्रेस का नेतृत्व सामूहिक रूप से आतंकित था।
प्रदेश उपाध्यक्ष जीतू जिराती ने कहा कि डॉ० मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहाँ का मुख्यमन्त्री (वजीरे-आजम) अर्थात् प्रधानमन्त्री कहलाता था। संसद में अपने भाषण में डॉ० मुखर्जी ने धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। उन्होंने तात्कालिन नेहरू सरकार को चुनौती दी तथा अपने दृढ़ निश्चय पर अटल रहे। अपने संकल्प को पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नजरबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी।
कार्यक्रम के अंत में सभी नेताओं व कार्यकर्ताओं को तुलसी के पौधे भेंट किये।
कार्यक्रम का संचालन रामस्वरूप गेहलोत ने किया एवं आभार मनोज ठाकुर ने माना।