रतलाम। मानव सेवा का सर्वोच्च स्वरूप नेत्रदान है, जो मृत्यु के बाद भी किसी के जीवन में उजाला भर देता है। धानमंडी निवासी स्व. श्रीमती कुसुमदेवी बोहरा ने अपने निधन के पश्चात नेत्रदान कर समाज के सामने मानवता, संवेदनशीलता और सेवा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। उनके इस पुनीत कार्य से दो दृष्टिहीन व्यक्तियों को नई दृष्टि मिलने का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
स्व. कुसुमदेवी बोहरा, स्व. शांतिलाल बोहरा की पुत्रवधू, एडवोकेट फतेहलाल कोठारी की सुपुत्री एवं अभय कुमार बोहरा की धर्मसहायिका थीं। उनके निधन के पश्चात परिजनों ने अत्यंत धैर्य, साहस और सामाजिक चेतना का परिचय देते हुए नेत्रदान का निर्णय लिया, जो सम्पूर्ण समाज के लिए प्रेरणास्रोत है।
इस महान सेवा कार्य की प्रेरणा दिवंगत के भाई उपेन्द्र कोठारी, दीपेन्द्र कोठारी, भूपेन्द्र कोठारी, पारस कोठारी,एवम राजेश कोठारी द्वारा दी गई, जिन्होंने पुत्र नवरतन बोहरा एवं समस्त परिजनों को नेत्रदान जैसे पुण्य कार्य हेतु प्रेरित किया।
नेत्रम संस्था के संस्थापक हेमन्त मूणत ने जानकारी देते हुए बताया कि परिजनों की सहमति मिलते ही गीता भवन न्यास के ट्रस्टी एवं नेत्रदान प्रभारी डॉ. जी.एल. ददरवाल को सूचना दी गई। उनकी टीम के सदस्य मनीष तलाच एवं परमानंद राठौड़ ने तत्परता से पहुँचकर नेत्र (कार्निया) संरक्षण की प्रक्रिया को पूर्ण श्रद्धा एवं विधिपूर्वक संपन्न किया।
नेत्रदान की इस प्रक्रिया के दौरान परिवारजनों के साथ-साथ समाजजन भी उपस्थित रहे, जिनमें प्रमुख रूप से नारायण तिवारी, संजय बम्बोरी, शिरीष मंत्री, आशीष अग्रवाल, राजेश अग्रवाल, जगदीश सेठ, किशोर सेठ, शीतल भंसाली, गोपाल राठौड़ (पतरावाला), ओमप्रकाश अग्रवाल, प्रशांत व्यास, गिरधारीलाल वर्धानी, सुशील मीनू माथुर, भगवान ढलवानी सहित अनेक रिश्तेदार, मित्र एवं शुभचिंतक शामिल रहे। उपस्थित लोगों ने स्वयं कार्निया संरक्षण की प्रक्रिया को देखा, इससे जुड़ी भ्रांतियों को समझा तथा भविष्य में नेत्रदान करने का संकल्प भी लिया।
इस अवसर पर नेत्रम संस्था द्वारा दिवंगत के परिजनों को प्रशस्ति पत्र भेंट कर उनकी उदारता, मानवीय संवेदना एवं सामाजिक दायित्व का सम्मान किया गया।
नेत्रम संस्था ने समाज के सभी नागरिकों से भावपूर्ण अपील करते हुए बताया कि नेत्रदान हेतु संस्था हर समय, 24×7 सेवा के लिए उपलब्ध है, ताकि किसी भी समय प्राप्त होने वाली सूचना पर त्वरित रूप से नेत्रदान की प्रक्रिया संपन्न कर अधिक से अधिक जरूरतमंदों को दृष्टि प्रदान की जा सके।
नेत्रदान — मृत्यु के बाद भी जीवन देने का श्रेष्ठ माध्यम है।

