रतलाम । आज शनिवार को मुनिश्री सद्भाव सागर जी मसा.ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कीहम सभी यहां भगवान जिनेंद्र देव की दिव्यदेशना का रसपान कर रहे हैं। भगवान जिनेंद्र देव की देशना चित्त को आल्हादित करने वाली है। पुण्याकर्षण श्रद्धालुओं के वेदना का कारण बनता है आगमन प्रसन्नता देता है और गमन खेदना देता है। पुण्य पुरुष पास से निकल जाए उसकी शुभ वर्गलाए आपके सैकड़ो अशुभ कर्मों, अशुभ विचारों को, अशोक स्थितियों का आभास करने वाली होती है। जब राम अयोध्या छोड़कर जाने वाले थे पिता से माताओं से भाई बंधुओ से मिले तब वे माताओं ने पुनः रिक्वेस्ट की दशरथ के पास पहुंचकर की हे वल्लभ चौक में डूबे इस पुण्य रूपी जहाज को रोको। शीघ्र ही राम लक्ष्मण सीता को पुनः राज्य में रोका जाए तब दशरथ कहते हैं यह विकार रूप जगत मेरे अधीन नहीं है यहां परिवर्तन होता रहता है यदि मेरा बस चलता तो मैं सभी जीवो को सुखी कर देता इसलिए कुछ बातें मेरे अधीन नहीं है। यह जीवन विकार युक्त है इसमें कुछ भी स्थाई नहीं है सब कुछ बदलने पर भी जिसमें बदलाव हो रहा है वह नित्य है बदल रही अनित्य है जिसमें बदलाव हो रहा है वह नित्य है इसलिए नित्य को जानो, नित्य को जानने से निरंक भाव आएगा और अनित्य को जानने से वैराग्य आएगा इच्छाओं का दमन, संयम में गमन के लिए श्रेष्ठ आचरण चाहिए वस्तु के नित्य अनित्य स्वरूप का चिंतन करना प्रारंभ हो जाता है। चिंतन प्रारंभ कर दो डॉक्टर की दवाई बाद में काम आएगी उसे संभालने के लिए पहले आपकेवचन काम आएगे। उक्त विचार अपने उद्बोधन में कहे।