जब पुण्य उदय में हो तो घर की औषधि भी बनती है अमृत — श्री श्री 108 मुनिश्री सद्भाव सागर जी मसा.

रतलाम 8 अक्टूबर । आज बुधवार को श्रुति संवर्धन वर्षा योग 2025,श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन मंदिर स्टेशन रोड, रतलाम आचार्य 108 विशुद्ध सागर जी म. सा. के शिष्य मुनि श्री 108 सद्भाव सागर जी म.सा. एवं क्षुल्लक 105 श्री परम योग सागर जी म.सा. द्वारा चंद्रप्रभा मंदिर मे पाट पर विराजित है। .
गुरुदेव सद्भाव सागर जी मसा. ने अपने उद्बोधन में कहा कि मनोहर प्राप्त है तो कार्य भी पवित्र होता है और कारण भी पवित्र होता है। संबंधों की पवित्रता तब तक है जब तक राग की पूर्ति होती रहती है और जब राग की पूर्ति नहीं होती तो संबंधों की पवित्रता भी नहीं रहती है और जब पूर्ति होना बंद हो जाए वही संसार के बंध का कारण हो जाते हैं। संबंधों की पूर्ति होने का कारण लोभ होता है और लोभ से ही अनाचार का जन्म होता है। पुण्य का उदय नहीं है तो औषधि भी काम नहीं करती और अगर पुण्य का उदय है तो घर की औषधि भी बड़े से बड़े रोग को ठीक कर देती है इसलिए अपने पुण्य को बढ़ते रहना चाहिए।
अपने खुद के मन से पूछो की क्या-क्या पाप कर चुके हैं स्वयं की आत्मा सब जानती है उन पापों के प्रति ग्लानी भाव आना चाहिए और जब पाप अधिक हो जाए तो या बड़ा दोष हो जाए तो दिन में दो बार प्रतिक्रमण करो, दान करो और जप, अनुष्ठान कर पापों का शमन करना चाहिए स्वयं का उद्धार करना चाहिए इन्हीं तरीकों से आप पापों से मुक्त होकर पुण्य का वर्धन कर सकते हो।उक्त बात अपने प्रवचन में कहीं ।श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन श्रावक संघ, श्री विद्या सिंधु महिला मंडल श्री विमल सन्मति युवा मंच एवं सकल दिगंबर जैन समाज के पदाधिकारी एवं सदस्य बड़ी संख्या में कथा का श्रवण कर रहे हैं उक्त जानकारी चंद्रप्रभ दिगंबर जैन श्रावक संघ संयोजक मांगीलाल जैन ने दी।