ऐसा गुस्सा 26 हिंदुओं की हत्या पर भी दिखाना चाहिए था।
प्रणव बजाज
बौद्धिक प्रतिकार,(संपादक)
5 सितंबर को जम्मू कश्मीर के श्रीनगर की हजरत बल दरगाह में उस समय तनावपूर्ण स्थिति हो गई, जब कुछ कट्टरपंथियों ने दरगाह परिसर में लगे शिलालेख के अशोक चिह्न को पत्थरों से तोड़ दिया। असल में दरगाह परिसर में जम्मू कश्मीर वक्फ बोर्ड ने नवीनीकरण का कार्य कराया था ताकि नमाज सुगमता के साथ पढ़ी जा सके। नवीनीकरण के कार्य के मद्देनजर ही दरगाह परिसर में शिलालेख स्थापित किया गया। इस शिलालेख पर भारत सरकार के प्रतीक अशोक चिह्न को भी अंकित किया गया, लेकिन शिलालेख पर अशोक चिह्न के अंकित होने को कुछ कट्टरपंथियों ने इस्लाम विरोधी माना और गुस्से में पत्थरों से अशोक चिह्न को नष्ट कर दिया। कट्टरपंििायों की यह कार्यवाही पूरी तरह राष्ट्र विरोधी मानी जाएगी। अशोक चिह्न तो भार के शौर्य का प्रतीक है। हर भारतीय के लिए अशोक चिह्न गर्व की बात है। ऐसे शौर्य वाले चिह्न को नष्ट करना राष्ट्र विरोधी कृत्य ही माना जाएगा। अच्छा होता कि हजरत बल दरगाह जैसा गुस्सा विगत दिनों तब दिखाया जाता, जब पाकिस्तान से आए आतंकियों ने धर्म के आधार पर पहलगाम में 26 हिंदुओं की बेरहमी से हत्या कर दी। सवाल उठता है कि आखिर कट्टरपंथी जम्मू कश्मीर की शांति भंग क्यों करना चाहते हैं? सब जानते हैं कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जम्मू कश्मीर खासकर घाटी में शांति कायम हुई है। जिस श्रीनगर में वर्ष भर कर्फ्यू लगा रहता था, उस श्रीनगर में अब हजारों कश्मीरी सुकून के साथ पांचों वक्त की नमाज पढ़ते हैं। शांति होने की वजह से ही कश्मीर में पर्यटन भी बढ़ा है। जिसका फायदा कश्मीरी मुसलमानों को मिला है। कश्मीर के आम मुसलमानों की भी यह जिम्मेदारी है कि वह कट्टरपंथियों का विरोध करे। यदि कश्मीरी मुसलमान अब भी चुप रहा तो कश्मीर घाटी के हालात पहले जैसे हो जाएंगे। आखिर कट्टरपंथी जम्मू कश्मीर में शांति क्यों भंग करना चाहते हैं।