रतलाम 29 जुलाई । क्रोध मे जीना नहीं है, क्रोध को जितना है। वर्षो लग जाते है रिश्तो को बनाने में और कुछ क्षण का क्रोध रिश्ते खत्म कर देता है। क्रोध आना स्वाभाविक है क्योंकि हम छदमस्थ है, लेकिन क्रोध को तुरंत खत्म करने का प्रयास करना चाहिए। पहला अणुव्रत हिंसा और दूसरा अणुव्रत है सत्य, तीन तरह की भाषा होती है, सत्य भाषा, असत्य भाषा और मिश्र भाषा। राजा हरिश्चंद्र हमेशा सत्य भाषा बोलते थे, मिश्र भाषा लौकिक भाषा होती है, जिस सत्य से किसी की हानि हो, किसी की जान पर बन आए उस वक्त मिश्र भाषा बोलना व्यावहारिक है। उक्त विचार नीमचोक स्थित जैन स्थानक मे आयोजित धर्मसभा में दक्षिण चन्द्रिका जैन दिवाकरीय महासती डॉ संयमलता म सा ने व्यक्त किए ।
आपने कहा की तीसरा अणुव्रत : चोरी नही करना, मालिक की आज्ञा के बिना, पूछे बिना कोई वस्तु लेना भी चोरी करना कहलाता है। साधु संत इसलिये प्रतिदिन श्रावक से उपयोगी वस्तु के उपयोग की आज्ञा लेते है। और तो और सन्त सती जमीन पर पड़ा तिनका भी उठाते है तो भी शकरेंद्र देव से आज्ञा मांगते है। अमर्यादित जीवन है तो तो जीवन मे पाप की बाढ़ आ जाती है, अत: जीवन में त्याग प्रत्याख्यान नियम जरूरी है, जिससे पाप की बाढ़ से बचा जा सके ।
महासती सौरभ प्रज्ञाजी मसा ने फरमाया की चार कशाय क्रोध मान माया लोभ । क्रोध सबसे उग्र कसाय है। इससे तीन S एस खत्म हो जाते है। सेहत, शांति और संबंध। क्रोध करने से बीपी- बढ़ जएगा। स्वास्थ खराब हो जाता है। शांति भंग हो जाती है। मन विचलित हो जाता है। और संबंध खत्म हो जाते है। क्रोध मे इंसान तवे पर रखे पापकार्न के समान उछलता है । वैज्ञानिक भी कहते है कि क्रोध की अवस्था में
खून मे जहर फैल जाता है। क्रोध को साँप की उपमा दी गई है।जीवन मे मृत्यु केवल एक बार आती है। लेकिन क्रोधी रोज मरता है । कोध्र कर्म और कषाय की बेडियो से जकड़ता है। कमठ ने क्रोध मे अपने भवों को बड़ा लिया और पार्श्वनाथ भगवान ने शांति धारण करके मोक्ष प्राप्त कर लिया। आप प्राफिट का व्यवसाय पसंद करोगे या नुकसान, क्रोध करने से क्या प्रॉफिट होता है। जो व्यक्ति क्रोध करता है वह जिन्दगी मे कभी आगे नही बड़ पाता है क्रोध का त्याग करने के वाले के मन में शांति रहती है। क्रोध नहीं करते वाला हमेशा समता के भाव में रहता है। फिर भले ही वो सामायिक नहीं भी करे तो चलेगा और हमेशा क्रोध करने वाला कितनी भी सामायिक कर ले उसे समता नही मिलेगी।