रतलाम, 25 जुलाई 2025 । चातुर्मास के दौरान स्टेशन रोड स्थित चंद्रप्रभ दिगम्बर जैन मंदिर में प्रति दिन चल रहीं धर्मसभा में शुक्रवार को परम पूज्य आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज के परम शिष्य मुनि श्री 108 सद्भभाव सागर जी महाराज ने भावपूर्ण प्रवचन दिए। अपने संबोधन में मुनिश्री ने जैन रामायण पद्म चरित्र के माध्यम से धर्म और भावों की शुद्धता पर गहराई से प्रकाश डाला।
मुनिश्री ने कहा, “भाव ही बंधन का कारण है और भाव से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।” उन्होंने बताया कि हर दिन मन में शुभ-अशुभ भाव आते हैं। “शुभस्य शीघ्रम” — शुभ कार्यों में विलंब नहीं करना चाहिए, परंतु क्रोध जैसे कषाय के समय निर्णय लेने में थोड़ी देर करना ही श्रेयस्कर होता है।
उन्होंने कहा कि जीवन में आने वाले पर्व केवल उत्सव नहीं बल्कि आत्मचिंतन की संधि हैं, जो हमें मोक्षमार्ग की ओर प्रेरित करते हैं। “खाने-पीने के लिए जीवन नहीं है, बल्कि आत्मा की शुद्धि के लिए मिला है यह जन्म।”
धर्मसभा में मुनिश्री ने श्रद्धा, संयम, अहिंसा और सेवा की भावना पर बल देते हुए कहा, “जो जीव गिर जाए, उसे उठाना ही धर्म है। दया को कभी न छोड़ें। धर्म, दया और विशुद्ध भाव ही जीवन को कल्पवृक्ष जैसा बनाते हैं।” उन्होंने कहा कि सच्चे ब्राह्मण वही हैं जो आत्मचिंतन में लीन रहते हैं। ब्रह्मचारी वह है जो ब्रह्म के समान आचरण करे। उन्होंने आग्रह किया कि प्रत्येक परिवार को कम से कम एक पक्ष में एक दिन साधु को आहार अवश्य देना चाहिए, ताकि घर में सुख, शांति और संस्कार स्थायी बने रहें। मुनिश्री ने कहा, “धर्म से हमारी पहचान नहीं बनती, धर्मात्मा बनने से बनती है। सत्य को कहने का साहस होना चाहिए और समाज को सही दिशा देने के लिए धर्म में प्रीति और दृढ़ता दोनों आवश्यक हैं।”
धर्मसभा में बड़ी संख्या में श्री दिगंबर जैन समाज के श्रद्धालु – महिलाएं, पुरुष और युवा – उपस्थित रहे। कार्यक्रम की जानकारी श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन श्रावक संघ रतलाम के संयोजक श्री मांगीलाल जैन ने दी। मुनिश्री ने घोषणा की कि रविवार प्रातः 8:30 बजे वे भगवान ऋषभदेव की मोक्ष प्राप्ति पर विशेष प्रवचन देंगें।