सरोकार – जब बुनियाद ही हो कमजोर तो ईमारत कैसे होगी बुलंद ?

डॉ. चन्दर सोनाने

केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय के राष्ट्रीय सर्वेक्षण परख में हाल ही में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। सर्वेक्षण में यह पता लगा है कि कक्षा तीसरी के 45 प्रतिशत छात्र 99 तक के अंक बढ़ते या घटते क्रम में नहीं रख पाते। इसी कक्षा के 42 प्रतिशत छात्र 2 अंकों की संख्याएँ जोड़-घटा भी नहीं सकते। छठी कक्षा के 47 प्रतिशत बच्चे 10 तक के पहाड़े भी नहीं सुना पाते।
उक्त सर्वेक्षण गत 4 दिसम्बर को देश के 36 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के 781 जिलों में स्थित 74,229 स्कूलों में हुआ था। इसमें कक्षा तीसरी, छठी और नौंवी के 21.15 लाख छात्र शामिल हुए थे। कुल 2.70 लाख शिक्षक और स्कूल प्रमुखों की भी भागीदारी इस सर्वेक्षण में रही। इस सर्वे के नतीजों में कक्षा तीसरी और कक्षा नौवीं में पंजाब राज्य का प्रदर्शन देशभर में सबसे अच्छा रहा। कक्षा छठी में केरल के छात्रों का प्रदर्शन देशभर में सबसे अच्छा रहा।
कक्षा तीसरी में पढ़ने वालों बच्चों में टॉप-5 राज्यों के नाम है- पंजाब, हिमाचल प्रदेश, केरल, मणिपुर और राजस्थान। इसके साथ ही बॉटम-5 राज्यों के नाम इस प्रकार है- मेघालय, पश्चिम बंगाल, जम्मू कश्मीर, बिहार और गुजरात। कक्षा तीसरी के सर्वेक्षण में 50 प्रतिशत बच्चे ही 100 रूपए तक का लेनदेन कर पाते हैं। अर्थात 50 प्रतिशत बच्चे 100 रूपए का लेनदेन करने में नाकाम पाए गए। सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि 58 प्रतिशत छात्र ही 2 अंकों का जोड़ घटाव कर पाते है। अर्थात 42 प्रतिशत छात्र 2 अंकों का जोड़ घटाव करने में असमर्थ पाए गए। सर्वे में यह भी पाया गया कि कक्षा तीसरी में पढ़ने वाले छात्रों में शहरी क्षेत्र से ग्रामीण बच्चे आगे पाए गए।
कक्षा छठी में हुए सर्वे में देशभर में टॉप-5 राज्य इस प्रकार हैं- केरल, पंजाब, दमन-दीव, चंडीगढ़ और हिमाचल प्रदेश। इसी प्रकार बॉटम-5 राज्य इस प्रकार हैं- झारखंड, नागालैंड, उत्तराखंड, गुजरात और तमिलनाडु। इस सर्वे में यह भी पाया गया कि इस कक्षा के 51 प्रतिशत बच्चे मूल्यों के प्रति जागरूक हैं। जैसे कतार में खड़े होना, डस्टबिन का उपयोग, मदद के लिए तैयार। अर्थात 49 प्रतिशत बच्चे मूल्यों के प्रति उदासीन पाए गए। इस कक्षा के 29 प्रतिशत बच्चे ही आधा और चौथाई का अर्थ समझ पाते हैं। इसका मतलब ये हुआ कि 71 प्रतिशत बच्चे आधा-चौथाई का अर्थ ही नहीं जानते !
कक्षा नौवीं में टॉप-5 राज्यों के नाम इस प्रकार हैं- पंजाब, केरल, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली। इसी प्रकार बॉटम-5 राज्यों में इन राज्यों के नाम शामिल हैं-उत्तराखंड, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश,गुजरात और उत्तरप्रदेश। इस सर्वे में यह भी पाया गया कि 37 प्रतिशत छात्र ही किशोर अवस्था में वृद्धि, हार्मोनल चेंज और कुल मिलाकर शारीरिक देखभाल के बारे में समझ रखते हैं। अर्थात 63 प्रतिशत छात्र इस उम्र में शारीरिक देखभाल के बारे में कोई जानकारी नहीं रखते हैं। इस कक्षा के 59 प्रतिशत बच्चे आँकड़ों का औसत नहीं बता पाते। इसका मतलब ये भी है कि कक्षा 9वी में 41 प्रतिशत बच्चे ही आँकड़ों का औसत बता पाए।
इस सर्वेक्षण में एक विशेष बात देखने में यह आई कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के गृह राज्य गुजरात कक्षा तीसरी, छठी और कक्षा नौंवी में तीनों स्तरों में एक भी स्तर में टॉप-5 में जगह नहीं बना पाया। बॉटम-5 में जरूर तीनों स्तर में गुजरात ने स्थान प्राप्त किया है। कक्षा तीसरी में गुजरात राज्य बॉटम-5 में सबसे आखिर में देखा गया। कक्षा छठी में बॉटम-5 में गुजरात राज्य चौथे स्थान पर देखा गया। इसी प्रकार कक्षा नौवीं में भी बॉटम 5 में गुजरात ने चौथा स्थान प्राप्त किया है। देश का कोई भी राज्य गुजरात को छोड़कर ऐसा नहीं है जो कक्षा तीसरी, छठी और नौवीं में बॉटम-5 में आया हो। गुजरात राज्य के लिए यह शर्मनाक बात है।
केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय के राष्ट्रीय सर्वेक्षण परख में जो शिक्षा की दयनीय हालत पाई गई, वह दुखद और सोचनीय है। केन्द्र शासन और राज्यों को यह सोचने की आवश्यकता है कि शिक्षा की यह बद्तर हालत क्यों और कैसे हुई ? इसके कारणों की पड़ताल करने की भी सख्त आवश्यकता है। अच्छा होता सर्वेक्षण में उन कारणों की भी खोज-खबर ली होती। शिक्षा की इस दयनीय हालत के लिए मुख्य रूप से कुप्रबंध ही जिम्मेदार है। जहाँ प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले सभी बच्चों के लिए एक मात्र शिक्षक ही तैनात किया जायेगा, तो यह हालत तो होनी ही है। जब बुनियाद ही कमजोर होगी, तो ईमारत बुलंद नहीं बनाई जा सकती। माध्यमिक विद्यालयों में भी पर्याप्त शिक्षक नहीं है।
कहीं-कहीं दो या तीन शिक्षक ही कक्षा पहली से आठवीं तक के बच्चों को पढ़ा रहे है। इसी प्रकार हाई स्कूल में भी विषय विशेषज्ञ नहीं होने से यह देखा गया है कि कला विषय के शिक्षक विज्ञान विषय पढ़ा रहे हैं और विज्ञान विषय का शिक्षक कला विषय पढ़ा रहे हैं। यही नहीं, अनेक ऐसे प्राथमिक विद्यालय हैं, जो भवनविहीन है। वे किसी टापरे में स्कूल लगा रहे है। माध्यमिक विद्यालयों में भी जितने कक्षाओं के मान से कक्ष उपलब्ध होना चाहिए, वे कहीं नहीं है। संसाधनों की अत्यधिक कमी है। शिक्षण सामग्री का स्कूलों में अभाव है। शिक्षक अपने जुगाड़ से शिक्षण सामग्री जुटा पाते हैं।
किस प्रकार प्राथमिक विद्यालय के बच्चे शिक्षा अध्ययन कर रहे है, इसका यहाँ एक उदाहरण देना पर्याप्त होगा। मध्यप्रदेश के गुना जिले के बमौरी विकासखंड के सांगई गाँव में शिक्षा की बदहाली की तस्वीर आपको बता रहे हैं। ग्रामीण ईलाकों के बदहाल स्कूलों की तस्वीरे तो आम है, लेकिन यदि ये पता चले कि शिक्षा विभाग और ग्राम पंचायत ने ही अपने प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों के लिए टपरा स्कूल बना दिया है, तो उसे क्या कहेंगे ? यकीन नहीं आता तो सांगई गाँव के एक ऐसे स्कूल पर नजर डाले। यहाँ 3 साल से बच्चे एक टापरे में बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं। इस गाँव में सरकारी भवन के नाम पर एकमात्र भवन इसी स्कूल का था, जो पिछले 3 साल से जर्जर अवस्था में है। इसमें खतरे के कारण क्लास नहीं लगाई जा सकती तो विभाग और पंचायत ने इस स्कूल के होनहार नौनिहालों के लिए टपरा स्कूल ही बना दिया !
शिक्षा की बदहाल हालत के लिए केन्द्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को गंभीरता पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। इस बदहाली के कारणों की खोज कर उसे प्राथमिकता पर दूर करने की आवश्यकता है। बच्चों के लिए पर्याप्त स्कूल भवन, शिक्षक और पर्याप्त संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करना केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता की सूची में आना ही चाहिए। अन्यथा जैसा चल रहा है वैसा ही चलता रहेगा !…