रतलाम । जीवो की विराधना से बचने के लिए कर्मो की निर्जरा हेतु साधु संत चार माह के लिए एक स्थान पर स्थिरवास करते है । आत्म चिंतन, आत्म मंथन ओर आत्म शुद्धि का संदेश लेकर आया है चातुर्मास, हमे शरीर का मेकअप नही आत्मा का चेकअप करना है । उक्त विचार श्रमण संघीय जैन दिवाकरीय महासती डॉ संयमलता जी ने धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए फरमाए ।
महासती जी ने फरमाया की वर्षा ऋतू मे चारो और जीवोत्तपति खूब बढ़ जाती है, इन जीवों की रक्षा के लिए आहार संयम करते हुए तप साधना जरूरी है । महासति जी ने आगे सभी से तप, त्याग व धर्माराधना के शुभ संकल्प लेकर तथा मन में रहे किसी प्रकार की बैर भावना को त्याग कर भक्ति भाव से रिचार्ज होने की सीख दी ।
साध्वी डॉ अमितप्रज्ञा ने चातुर्मास का महत्व बताते हुए कहा अष्ठ कर्मो को नष्ट करने आया है चातुर्मास, मोह माया के बंधन को, तेरे मेरे के झगड़े को मिटाने आया है चातुर्मास । छोटे छोटे नियम, त्याग से जीवन में दाग नही लगता ।
धर्मसभा में डॉ कमलप्रज्ञा म सा ने और साध्वी सौरभप्रज्ञा म सा ने सुमधुर गीत प्रस्तुत किया ।
कार्यक्रम का संचालन गुणवंत मालवी ने किया । श्रीसंघ प्रवक्ता निलेश बाफना ने बताया की गुरु पूर्णिमा पर महामंगलकारी अनुष्ठान एवं जीवन में गुरु के महत्व पर विशेष प्रवचन होंगे । इस से एक दिन पहले महामंगलकारी पैसाठिया यंत्र जाप का आयोजन हुआ जो प्रातः 6 बजे से सांयकाल 6 बजे तक चला जिसमे समाज जन ने बड़ चढ़ कर हिस्सा लिया ।