नीमवाला उपाश्रय में चातुर्मासिक प्रवचन शुरू
रतलाम9 जुलाई । चातुर्मास तप, आराधना के लिए समेकित अवसर है। यह स्वाध्याय को दृढ़ और मजबूत बनाता है और वही स्वाध्याय आगे जाकर मोक्ष मार्ग तक ले जाता है। किसी भूमिका में जो दादामुनि ने जो उपकार किए हैं, उन्होंने जो दिया है, उसको वापस लौटना है। मेरा तुझको समर्पण। चातुर्मास में हमें आपकी ओर से सिर्फ समय चाहिए और कुछ नहीं चाहिए, जितना चाहे आप हमारा लाभ ले लो।
उक्त उद्गार साध्वी श्री शाश्वतप्रियाश्रीजी मा.सा. ने नीमवाला उपाश्रय में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में कहे। आपने कहा कि यह सुयं में वर्षावासोत्सव आत्म परिवर्तन करने के लिए है। पानी तो पर्वत पर बरसता है लेकिन वहां से सीधा नीचे उतरता है। पानी जंगल में बरसता है तो वह जमीन में उतरता है, बीज का अंकुर भी फूटता है, घास पत्तियां भी होती है लेकिन उस फसल का कोई अर्थ नहीं रहता है, पर पानी जब खेत में बरसता है और जमीन में उतरकर बीज का अंकुर फुटता है, तो फसल भी होती है। हमें हमारी पात्रता चेक करना है कि इनमे से कौन सी लेकर बैठे हैं। बरसात में आपने आत्मा पर जो यह रेनकोट पहना है, इसे आपको उतारना है।
साध्वीजी ने कहा कि हमें यहां देखना होगा कि क्या हम पर्वत जैसे हैं, बंजर जमीन जैसे है, जंगल जैसे है या खेत जैसे है। चातुर्मास में हर जगह पर जिनवाणी, प्रवचन शुरू हो गया है अर्थात संत का बरसना शुरू हो गया है। हमें अपनी पात्रता चेक करनी है की पानी का आगमन तो हो गया है लेकिन वह हमारे भीतर प्रवेश कर रहा है या नहीं।
पर्वत के ऊपर कुछ नहीं उगता है, सिर्फ पत्थर दिखता है। लगातार अच्छे-अच्छे प्रवचन सुनने के बाद भी आपके मन में राग द्वेष की वही भावना बनी रहती है तो प्रवचन सुनने का कोई मतलब नहीं है। हमें पहाड़ जैसा, जंगल जैसा, बंजर जमीन जैसा नहीं अपितु खेत जैसा बनना है।
साध्वीजी ने कहा कि यह चातुर्मास हृदय को सॉफ्ट बनाने का, शत्रुता को मिटाने का, कर्तव्य को निभाने का, नाम की चाह को दूर करने का है। हमें उस पक्षी जैसा नहीं बनना है जिस पर पानी गिरे तो कोई फर्क नहीं पड़ता। हमें तो काली मिट्टी जैसा बनना है, जिस पर पानी का गिला रुमाल भी रख जाए तो सॉफ्टनेस आ जाती है। यह सुयं में वर्षावासोत्सव आत्म परिवर्तन करने के लिए है। कई लोग पर्वत जैसे भी होते हैं कि जिनवाणी बरसती रहेगी और बंद हो जाएगी लेकिन उनमें प्रवेश नहीं करेगी। यदि हृदय में सॉफ्टनेस नहीं होती है तो धर्म प्रवेश नहीं कर पाता है। सद्गुरु आएंगे, वे बरसेंगे लेकिन धर्म प्रवेश नहीं कर पाएगा।
हमारा प्रवेश और हमारा आगमन हमारी तरफ की बात थी, लेकिन प्रवेश करवाना नहीं करवाना वह आपकी तरफ की बात है। दिल में हमारा प्रवेश करवाना, जिनवाणी का प्रवेश करवाना वह तुम्हारी तरफ की बात है। यह चातुर्मास धर्म को निभाने का है। एक घंटा प्रवचन सुनने के बाद, 23 घंटे वही आवाज आपके दिमाग में गूंजती रहे, ना तो मान लेना की प्रवचन सही ढंग से सुना है। क्योकि कोई यदि कोई एक गलत बात बोल देता है तो दिन भर हमारे दिमाग में वही घूमती रहती है। जैसे खेत का उद्देश्य फसल को पैदा करना होता है , वैसे ही आत्मा का उद्देश्य विकास को प्राप्त करके मोक्ष तक पहुंचाना है ।