जाँच दरों में 14 से 1108 प्रतिशत तक हुई वृद्धि
भोपाल (डॉ. चन्दर सोनाने) । करीब डेढ़ साल पहले मध्यप्रदेश की श्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने एक मनमाना और अदूरदर्शितापूर्ण फैसला लिया था। आमजन को दी जा रही सुविधाओं के विरूद्ध प्रदेश के 13 सरकारी मेडिकल कॉलेजों की पैथोलॉजी लैब का सरकार द्वारा निजीकरण कर दिया गया था। निजीकरण का दुष्परिणाम यह हुआ कि उक्त 13 सरकारी मेडिकल कॉलेजों की लैब की जाँच दरों में 14 से लेकर 1108 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई है।
हुआ कुछ यूं था कि मध्यप्रदेश के मेडिकल कॉलेजों की पैथोलॉजी लैबों के निजीकरण के साथ ही राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने अपने खर्चे पर कंपनी को 5 से 8 हजार वर्गफीट की लैब भी बना करके दी। इन्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर एनएबीएल/एनएबीएच सर्टिफिकेट का पूरा खर्चा भी उठाया। इसके बाद होना यह था कि जाँच की दरें कम हो जाए। किन्तु हुआ इसका उल्टा। निजीकरण के बाद जाँच दरों में अधिकतम 1108 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई है। इस कारण सरकार को निजी कंपनियों को 200 करोड़ रूपए का भुगतान करना पड़ रहा है। इतना ही नहीं, बिल बढ़े इसके लिए सर्दी, जुकाम और ज्वाइंट पेन के मरीजों की भी बेवजह महंगी जाँचें की जा रही है। जाँच का काम देख रही हिन्दुस्तान अरनील क्लीनिकल लैब ( एचएसीएल ) और मेडिकल कॉलेजों के बीच जो अनुबंध हुआ उसके अनुसार जाँच की दरें चौंकाने वाली है। जो जाँच भोपाल के एम्स में 300 रूपए में हो जाती है, वहीं अब प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में 550 रूपए तक में हो रही है। चंडीगढ़ पीजीआई में जो टेस्ट 200 रूपए का है उसके लिए राज्य सरकार निजी कंपनी को 460 रूपए दे रही है।
रिएजेंट ( केमिकल ) की कमी बताकर तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा निजी कंपनी को सरकारी सेटअप में एन्ट्री दिलाई गई। राज्य सरकार ने लगभग 100 करोड़ से ज्यादा का इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी को सौंप दिया। मजेदार बात यह है कि लैब, डॉक्टर, टैक्नीशियन सब राज्य सरकार के है और केवल जाँचें निजी हाथों को सौंप दी गई है। कंपनी की जिम्मेदारी केवल यह है कि उनके दो कम्प्यूटर ऑपरेटर, सुपरवाईजर, मशीन रखरखाव और रिएजेंट तक सीमित है। सामान्यतः किसी भी पैथोलॉजी लैब जाँच में रिएजेंट का खर्च 10 से 15 प्रतिशत तक ही है। इस प्रकार सारा खर्च राज्य सरकार ने उठाया और पूरा मुनाफा कंपनी को मिल रहा है।
आइये, अब आपको बताते हैं किन प्रमुख जाँचों में 100 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई है। ब्लीडिंग टाईम, सीटी की जाँच पहले मात्र 21 रूपए में होती थी। अब 47 रूपए में यहीं जाँच हो रही है। इस प्रकार करीब 124 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है। बीएमएस और साइटोकेमिस्ट्री की जाँच पहले 240 रूपए में होती थी। अब 506 रूपए में यहीं जाँच हो रही है। इस प्रकार करीब 111 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है। बोन मैरो की जाँच पहले 72 रूपए में होती थी। अब 150 रूपए में यहीं जाँच हो रही है। इस प्रकार करीब 200 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है। फाइब्रिनोजन डी-डिमर की जाँच पहले 60 रूपए में होती थी अब 148 रूपए में हो रही है। इस प्रकार इसमें करीब 250 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सीरम इलेक्ट्रोलाईट की जाँच पहले 72 रूपए में होती थी। अब उसके 165 रूपए लग रहे है। इसमें भी करीब 200 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मैग्नीशियम की जाँच पहले 42 रूपए में होती थी। वहीं जाँच अब 165 रूपए में हो रही है। इस प्रकार इसमें करीब 300 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है।
सीरम विटामिन्स की जाँच पहले मात्र 52 रूपए में होती थी। वहीं अब यह जाँच 210 रूपए में हो रही है। इसमें अब करीब 400 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। टोटल टेस्टोस्टेरोन की जाँच पहले मात्र 51 रूपए में होती थी। वहीं अब 120 रूपए में हो रही है। इसमें अब करीब 250 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सी-पेप्टाइड की जाँच पहले 105 रूपए में होती थी। वहीं अब यह जाँच 240 रूपए में हो रही है। इसमें अब करीब 250 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ईएसआर की जाँच पहले मात्र 18 रूपए में होती थी। वहीं अब यह जाँच 81 रूपए में हो रही है। इसमें अब करीब 350 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। प्लेटलेट कन्सट्रेट की जाँच पहले मात्र 56 रूपए में होती थी। वहीं अब यह जाँच 400 रूपए में हो रही है। इसमें अब करीब 614 प्रतिशत की वृद्धि कर दी गई है। बोन मैरो स्मीयर टेस्ट की जाँच पहले मात्र 81 रूपए में होती थी। वहीं अब यह जाँच 250 रूपए में हो रही है। इसमें अब करीब 209 प्रतिशत की वृद्धि कर दी गई है। सबसे अधिक चौंकाने वाली जांच के रेट बढ़ाए गए है पैक्ड रेड सेल के। इसकी जाँच पहले मात्र 120 रूपए में होती थी। अब इसे बढ़ाकर 1450 रूपए कर दी गई है। इस प्रकार इसमें 1108 प्रतिशत की वृद्धि कर दी गई है।
उल्लेखनीय है कि जिस प्रकार तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा मध्यप्रदेश के 13 मेडिकल कॉलेजों की पैथालॉजी लैब का निजीकरण कर दिया था, जिसकी वजह से जाँच दरों में बेतहाशा वृद्धि हो गई है। उसी प्रकार अब डॉ.मोहन यादव की सरकार द्वारा सरकारी अस्पतालों को भी निजी हाथ में देने की गतिविधि शुरू कर दी गई है। मध्यप्रदेश में 51 सिविल अस्पताल है। 348 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं। इनमें से प्रथम चरण में राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने पीपीपी मोड पर 10 जिला अस्पतालों में निजी मेडिकल कॉलेज बनाने का फैसला कर लिया है। ये 10 जिला अस्पताल हैं- खरगोन, धार, बैतूल, टीकमगढ़, बालाघाट, कटनी, सीधी, भिंड, मुरैना आदि।
यह सर्वज्ञात सत्य है कि राज्य में डॉक्टरों की भारी कमी है। सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञों के 2,374 पद बरसों से खाली पड़े है। यह कुल स्वीकृत पदों का 63.73 प्रतिशत है। चिकित्सा अधिकारियों के 1,054 पद खाली पड़े हैं। यह स्वीकृत पदों का 55.97 प्रतिशत ही हैं। दन्त चिकित्सकों के 314 पद खाली पड़े है। जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में पर्याप्त स्त्री रोग विशेषज्ञ और आवश्यक सहायक कर्मचारी नहीं है। उक्त आंकड़ों को देखकर ऐसा लगता है सरकार बरसों से खाली पड़े पद भरना ही नहीं चाहती ।
मध्यप्रदेश के गरीबों के लिए बीमार होने पर एक मात्र सहारा मेडिकल कॉलेज, सरकारी जिला अस्पताल और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र ही हैं। इन सरकारी अस्पतालों का भी निजीकरण कर दिया जाएगा तो गरीब अपना इलाज कराने कहाँ जायेगा ? किसी भी राज्य या केन्द्र सरकार के लिए अपने नागरिकों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना उसका मूलभूत कर्तव्य है। संविधान में भी आमजन को चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराना राज्य की जिम्मेदारी माना गया है। यदि इन्हीं सरकारी अस्पतालों का निजीकरण कर दिया जायेगा तो संविधान का भी उल्लंघन होगा ।
प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से अपेक्षा है कि वे आम जन के हित में तत्कालीन श्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार द्वारा प्रदेश के 13 मेडिकल कॉलेजों की पैथोलॉजी लैब की निजीकरण कर दिया गया था, उसे तुरंत समाप्त कर पूर्ववत व्यवस्था कायम करें। साथ ही सरकारी अस्पतालों के किए जा रहे निजीकरण के प्रयासों पर भी तुरंत प्रभाव से रोक लगाएँ, ताकि आमजन को निजीकरण के दुष्परिणाम से राहत मिल सके।