- धर्मान्तरण रोकने के लिये सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट लागू करें
- केलकर स्मृति व्याख्यानमाला में बोले सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता श्री अश्विनी उपाध्याय
इंदौर। भारत की समस्याओं का मूल कारण सड़ी शिक्षा व्यवस्था और घटिया न्याय व्यवस्था है। समस्याओं के समाधान के लिये शिक्षा में संस्कार और कानून का खौफ होना चाहिये। भारत में यदि सामाजिक समरसता को स्थापित करना है तो हिंदूओं की घर वापसी जरूरी है। सरकार को ऐसी नीतियां बनानी होगी, जिससे हिंदूओं की घर वापसी हो सके। धर्मान्तरण रोकने के लिये सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट लागू करना चाहिये। हिन्दूस्तान में एक देश -एक विधान की व्यवस्था लागू होनी चाहिये।
उक्त विचार सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने ’समरसता में समर्थता’ विषय पर व्यक्त किये। श्री उपाध्याय शनिवार को जाल सभागृह में राष्ट्र सेविका समिति की संचालिका वंदनीय लक्ष्मीबाई केलकर की स्मृति में आयोजित व्याख्यानमाला को सम्बोधित कर रही थे। आपने कहा, किसी भी राष्ट्र का भौतिक विकास जरूरी है, लेकिन इसके साथ ही नैतिक, बौद्धिक, सामाजिक, चारित्रिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक विकास भी जरूरी। इनके बिना राष्ट्र का पूर्ण विकास संभव नहीं है। भारत का संविधान भी सामाजिक समरसता की बात करता है, लेकिन भारत में सामाजिक समरसता तब तक पूर्ण स्थापित नहीं होगी, जब तक शिक्षा और न्याय व्यवस्था में सुधार नहीं होता है। हम लोग सतयुग और कलयुग की बात करते है। वास्तव में यह क्या है? जहां शिक्षा में संस्कार और न्याय व्यवस्था का खौफ हो, वहां सतयुग है और जहां ये नहीं है, वहां कलयुग है। भारत में कमीषनखोरी, घूसखोरी, मिलावटखोरी, कालाबाजारी, धर्मान्तरण, आंतकवाद, अलगांववाद बढ़ रहा है। भारत की ये समस्याएं विश्व स्तर की नहीं है। यह केवल भारत में ही है। ये समस्याएं लाइलाज नहीं है। भारत की समस्याओं के मूल में सड़ी शिक्षा व्यवस्था और घटिया न्याय व्यवस्था है। यहां शिक्षा संस्कार और न्याय व्यवस्था का खौफ नहीं है। आज सामाजिक समरसता टूट रही है क्योंकि न्याय और शिक्षा व्यवस्था तार-तार हो रही है। न्याय व्यवस्था यदि लम्बी है तो वह सीधे-सीधे शोषक के पक्ष में है। शिक्षा व्यवस्था में सुधार करते हुए पूरे देश में एक सी शिक्षा व्यवस्था लागू करनी होगी। शिक्षा बोर्ड को एक करना होगा और काॅमन सिलेबस लागू करना होगा। ऐसा करने पर भी शिक्षा व्यवस्था में संस्कार आएंगे। आज की शिक्षा समाज में श्रेणियों को जन्म दे रही है। भारत के बच्चों को बचपन में ही वैदिक शिक्षा देनी होगी, तभी शिक्षा में संस्कार आएंगे। गोत्र व्यवस्था को मजबूत किये बिना जातिवाद, भाषावाद को तोड़ा नहीं जा सकता।
श्री उपाध्याय ने कहा, भारत की समरसता को ठीक करना है तो धर्मान्तरण को रोकना होगा और हिंदूओं की घर वापसी करनी होगी। सरकार के संस्कृति मंत्रालय को घर वापसी के लिये नीति बनानी चाहिये। धर्मान्तरण से बचने के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट जैसे प्रावधान लागू किये जाने चाहिये। धर्मान्तरण को रोके बिना सामाजिक समरसता संभव नहीं है। हिंदू धर्म नहीं छोड़ने वालों के कारण ही आज हम ’नारी तू नारायणी’ और ’सबका साथ-सबका विकास’ की बात कर पा रहे। भारत में समरसता से ही नैतिक, आघ्यात्मिक, सामाजिक, मानसिक विकास संभव है। व्याख्यानमाला की अध्यक्षता डा. नीलिमा देशमुख ने की। मुख्य अतिथि श्रीमती मधुलिका करूण थी। आरंभ में अतिथियों ने वंदनीय लक्ष्मीबाई केलकर, भारत माता और मां अहिल्या के चित्रों पर माल्यार्पण और दीप प्रज्जवलन किया। अतिथियों का स्वागत शॉल श्रीफल से किया गया। व्याख्यानमाला की प्रस्तावना राष्ट्र सेविका समिति, इंदौर की प्रमुख श्रीमती सीमा भिसे ने रखी। श्रीमती कल्याणी कानडे ने समरसता पर गीत प्रस्तुत किया। संचालन डा. सोनाली नरगूंदे ने किया। व्याख्यानमाला का आयोजन देवी अहिल्या सेवा न्यास, राष्ट्र सेविका समिति, इंदौर, भोजपुरी साहित्य अकादमी एंव मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, भोपाल के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।
व्याख्यानमाला के दूसरे दिन 19 जनवरी को राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय सह कार्यवाहिका श्रीमती अलका इनामदार का व्याख्यान होगा। जाल सभागृह में आयोजित व्याख्यान शाम 5 बजे आरंभ होगा। यह जानकारी इंदौर विभाग की प्रमुख श्रीमती सीमा भिसे ने दी।