इंजीनियर अतुल सुभाष के आत्महत्या के प्रकरण में पूरे देश – समाज को हिलाकर रख दिया है। जागरूक नागरिक इस प्रकरण की परिस्थितियों पर विचार कर उनका विश्लेषण के लिए बाध्य हो गये हैं। कोई भी व्यक्ति प्रताड़ना की चरमसीमा पर पहुंचने पर ही आत्महत्या करता है। अतुल की आत्महत्या समाज में व्याप्त भ्रम का निवारण करेगी। समाज में यह भ्रम है कि ससुरालवाले द्वारा लड़कियों का ही उत्पीड़न किया जाता है। देश के कानून भी इसी भ्रम पर आधारित हैं। अतुल ने अपने उत्पीड़न की जो कहानी उसके वीडियो में बतायी वह बहुत दर्दनाक और विचलित करने वाली है। इंजीनियर अतुल सुभाष ने अपने आत्महत्या वीडियो में पूरा विवरण दिया है कि कैसे उसके ससुराल वाले, पत्नी – सास ने उससे कितनी रकम वसूली। अतुल ने 24 पेज का सुसाइड नोट और 1 घंटे 30 मिनिट का वीडियो रिकॉर्ड कर पारिवारिक कलह और कानूनी लड़ाई से हो रही मानसिक प्रताड़ना के असहनीय कष्ट का विवरण दिया है। अतुल ने पत्नी निकिता सिंघानीया, सास, साले और चचेरे ससूर को मौत के लिए उत्तरदायी बताया है। शव के पास एक तख्ती मिली जिस पर लिखा था “इंसाफ बाकी है”। सुसाइडनोट में न्याय व्यवस्था पर भी प्रश्न चिन्ह लगाया है। अतुल ने लिखा शादी के बाद से ही निकिता और उसका परिवार किसी न किसी बहाने उससे रूपये मांगता रहा। जब उसे लगा कि उसका अनुचित शोषण किया जा रहा है तब उसने रूपये देने से इंकार कर दिया। इसके बाद पत्नी के परिवारवालों ने उस पर दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा, हत्या इत्यादि के 9 केस लगा दिये। इनके सुनवाई के लिए 120 तारीखे लगीं। उसे बार- बार जौनपुर जाना पड़ता, इतनी छुट्टियां नहीं होती थी। अतुल की सास ने उससे 20 लाख रूपये वसूले जो कभी नहीं लौटाए। उसकी पत्नी भी शादी- पूजा जैसे अवसर पर कम से कम 6 साड़ी और 1 गोल्ड सेट मांगती थी। उसने लिखा की कानूनों का दुरूपयोग कर उसे प्रताड़ित किया जा रहा है। उसने अनुभव किया कि भारत में परिवार संबंधी कानून अनुचित और एक पक्षीय है। ये कानून भारत में पुरुषों के नरसंहार जैसे हैं। उसकी पत्नी और सास उसके 4 वर्ष के बेटे से मिलने भी नहीं देते थे। पुत्र को संबोधित कर अतुल ने जो कुछ लिखा वह बहुत कष्टदायक है।
अतुल ने कानून व्यवस्था पर भी बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाया है। प्रत्येक पेशी पर उसे रिश्वत देनी पड़ती थी। उससे 5 लाख रूपये मांग गये और जज ने पक्ष रखने का मौका दिये बगैर ही पत्नी को 80 हजार रूपये देने का आदेश दे दिया। अतुल ने लिखा कि उसकी सास ने उसे यहां तक बोला कि – “अरे, तुमने अब तक सुसाइड नहीं किया”? किन्तु अतुल के सुसाइड नोट ने नये एंगल को उजागर किया है। पत्रकार के नाते ऐसे कई प्रकरणों के बारे में पुलिस अधिकारियों से चर्चा करने का अवसर मिला। महिला थाने पर जो महिला सलाहकार समिति होती है उसके सदस्यों से भी चर्चा हुई। उन सबका यह अनुभव रहा कि लड़की मां पति-पत्नी के बीच में समझौता नहीं होने देती। वह अपने स्वार्थ के लिए विवाद को अधिक उलझाती है। उसको यह समझ में नहीं आता कि वह अपनी बेटी का बड़ा अहित कर रही है? एक महिला सदस्य ने पुलिस द्वारा आयोजित परिचर्चा में बताया कि पति-पत्नी के संबंधों में सबसे बड़ा रोड़ा लड़की की मां होती है। इस अनुभव के बाद सलाहकार समिति ने विवाद सुलझाने के प्रयास के समय लड़की की मां को बाहर बैठाना शुरू कर दिया। जब मां नहीं होती है, तो पति-पत्नी में समझौता हो जाता है। मां समझौता नहीं होने देती। मां यह नहीं समझती है कि अपनी पुत्री का कितना बड़ा अहित कर रही है। भारतीय समाज में तलाकशुदा लड़की का सम्मान नहीं होता।
कुछ वर्षों पूर्व इंदौर में घटित एक प्रकरण याद आ रहा है। पति-पत्नी दोनों डॉक्टर थे, दोनों एमडी। उनके जीवन में विवाद प्रारंभ हुए। एक दिन पत्नी की मां और पिता की उपस्थिति में विवाद इतना बढ़ा कि डॉक्टर पति ने पत्नी, सास-ससूर और एक छोटी बेटी की हत्या कर दी और स्वयं ने आत्महत्या कर ली। स्वार्थवश लड़की के मां-बाप को यह समझ में नहीं आया कि वे अपनी पुत्री का ही बहुत अहित कर रहे थे।
आर्थिक सम्पन्नता बढ़ने के साथ ही पारिवारिक विवाद बढ़ने लगे हैं। इनसे किसी का भी हित नहीं होता, किन्तु जानबुझ कर अनुचित व्यवहार करते हैं। जब लड़की की मां ही उकसाती हो, तब तो समझते की कोई संभावना नहीं होती। इस प्रकरण में सभी अतुल से पैसा वसूलने में लगे थे। न्यायालय के बार में जो कुछ लिखा उस पर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय को विचार करना चाहिए। न्यायालयीन प्रक्रिया से परिचित लोग जानते हैं कि वहां कैसे काम होता है। वास्तव में न्याय प्रक्रिया में संपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता है। न्याय सरल हो और तुरंत हो, सभी प्रकरणों के निर्णय की समयसीमा निर्धारित होना चाहिए।
समाज में भी परिवर्तन की आवश्यकता है आदिवासी समाज से प्रेरणा लेकर विवादो को समाज में सुलझाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। आदिवासी समाज में पारिवारिक विवाद समाज की पंचायत सुलझाती है और उसके निर्णय सभी मानते हैं। इससे न्यायालय में जाने की उलझन से परिवार बच जाता है।
सामाजिक चेतना की बहुत आवश्यकता है। पति-पत्नी के विवाद से कितने परिवार परेशान हो जाते हैं। अतुल के प्रकरण में लड़की की मां ही उकसाती है और स्वयं अपने दामाद से वसूली करती है। ऐसे में तो विवाद में अच्छे निर्णय की संभावना नहीं बचती। समाज की स्मृति कमजोर होती है। वह दुखद प्रकरण को जल्दी ही भुल जाता है।
इंजीनियर अतुल को अब क्या न्याय मिलेगा? किन्तु उसकी आत्महत्या ने समाज के कर्णधारों को और सरकार को वर्तमान कानूनों पर पुर्नविचार करने के लिए विवश करना चाहिए। आमधारणा यह है कि पति और ससुराल वाले ही लड़कियों का उत्पीड़न करते हैं उन्हें परेशान करते हैं। अतुल का प्रकरण इस भ्रम को तोड़ता है। कई प्रकरण जानकारी में हैं, जिनमें विवाह के पहले ही कई शर्ते लड़कियां रखने लगी हैं। यह प्रकरण इतना दुखद है कि अतुल की आत्मा की शांति के लिये प्रार्थना भी नहीं की जा सकती।