चुनाव प्रक्रिया की सुचिता प्रजातंत्र के प्राण  – प्रो. डी.के. शर्मा

13 नवंबर को मध्य प्रदेश के बुधनी और विजयपुर विधानसभा क्षेत्र के लिए उपचुनाव हुए।  मतदान के समय माहौल इतना खराब हो गया कि भाजपा-कांग्रेस दोनों के प्रत्याशियों को प्रशासन द्वारा नजरबंद करना पड़ा। साथ ही दोनों दलों के अध्यक्ष को विधानसभा क्षेत्र की सीमा के बाहर ही रोकना पड़ा। प्रशासन की कार्यवाही से कई विचारणीय प्रश्न उत्पन्न हो जाते हैं। सबसे प्रमुख प्रश्न यह है कि चुनाव प्रक्रिया की सुचिता किस प्रकार सुरक्षित रखी जाए? प्रत्याशियों को प्रतिबंधित करना और दोनों दल के प्रदेशाध्यक्ष का प्रवेश वर्जित करना एक घटना मात्र नहीं है। यह प्रतिबिम्ब है किसी भी तरह चुनाव जीतने की इच्छा का। चुनाव के समय की उपलब्ध खबरों के अनुसार चुनाव अधिकारियों के लिए चुनाव प्रक्रिया का उचित पालन करवाना असंभव हो गया होगा। प्राप्त सूचनाओं के आधार पर अनुमान लगाएं, तो समझ में आता है कि निश्चित ही माहौल बहुत खराब हो गया होगा तभी तो जिला प्रशासन को दोनों प्रत्याशियों को नजरबंद करना पड़ा। प्रशासन उचित कार्यवाही के लिए बधाई का पात्र है। किन्तु यह एक घटना मात्र नहीं है, यह प्रतिबिम्ब है राजनीति में बढ़ते चारित्रिक संकट का। हम इस पर गंभीरता से विचार कर समस्या का उचित विश्लेषण करने का प्रयास करते हैं।

आज भी महाराष्ट्र एवं झारखंड में चुनाव हो रहे हैं, कई उपचुनाव भी है। वैसे भी हमारे देश में कहीं न कहीं चुनाव अथवा उपचुनाव होते रहते हैं और उनमें चुनाव प्रक्रिया में विघ्न की खबरें आती रहती हैं। मारपीट की जाती है, बुथ लूट लिए जाते हैं, इतना सब होते हुए भी हम हमारी चुनावी प्रक्रिया को उचित और सफल मानते हैं? जो जीता उसके लिए अच्छा, जो हारा उसके लिए बुरा। निर्णय तो निष्पक्ष समीक्षक को ही करना है- पत्रकार करें, समीक्षक करें, आलोचक करें। आवश्यकता है कि यह विवेचना निष्पक्ष हो, निर्भिक हो। यह आलोचक का धर्म है।

चुनाव प्रक्रिया प्रजातंत्र की प्राण है। चुनाव की पवित्रता निष्पक्षता के लिए मतदाताओं को निर्भिकता से मतदान करने का अवसर मिले यह आवश्यक है। चुनाव के समय ऐसा वातावरण बनाया जाना चाहिए कि मतदाता निर्भिक होकर बिना किसी दबाव के स्वयं की इच्छानुसार वोट दे सकें। समाज में खुली आंखों से देखकर विवेचना करने वाले पत्रकार साथी जानते हैं कि सभी वोटर अपनी मनमर्जी से वोट देना चाहते हैं किन्तु राजनैतिक दल ऐसा होने नहीं देते। चुनाव में कई तरह के प्रत्याशी होते हैं और वे चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने के अपने-अपने उचित-अनुचित तरीके अपनाते हैं। वोट धर्म-जाति-परिवार के नाम पर मांगे जाते हैं। दादागिरी का भी चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने का अलग ही आलम होता है तभी तो यूपी के सभी नामी गुंडे विधानसभा अथवा लोकसभा के सदस्य निर्वाचित होते रहे हैं, आज भी हैं। ऐसे लोग चुनाव प्रक्रिया में बहुत अनुचित साधनों का उपयोग करते हैं। मुसीबत प्रशासन की होती है, उन्हें कठोर कदम उठाने पड़ते हैं। बुधनी और विजयपुर में प्रशासन द्वारा लिए गए सख्त कदम इसका प्रमाण है।

सुव्यवस्थित चुनाव केवल नियमों के आधार पर नहीं कराये जा सकते। यह चुनाव लड़ने वाले सभी प्रत्याशियों के सहयोग से ही संभव है, लेकिन ऐसा होते दिखाई नहीं देता। सभी दल सहमत हो कि चुनाव शांति पूर्ण करवाएंगे तभी यह संभव है। कई राज्यों के चुनाव में बहुत हिंसा होती है। चुनाव के समय खून-खराबा तक होता है। बंगाल जैसे राज्य इसका उदाहरण है। बुधनी-विजयपुर की घटना मध्य प्रदेश के लिए अपवाद है। मध्य प्रदेश में चुनाव अधिकतर शांतिपूर्ण ढंग से होते रहे हैं। विजयपुर और बुधनी की घटना से सबक लेकर चुनाव आयोग और प्रशासन को मध्य प्रदेश में भविष्य में अधिक सतर्क होना चाहिए। जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं उनमें विशेष सतर्कता और कठोरता की आवश्यकता है।