भारतीय क्रिमिनल लॉ से अपराधियों में कोई खौफ नहीं–विटनेस प्रोटक्शन एक्ट समय की मांग –प्रधानमंत्री और कानून मंत्री को पत्र
वा ई श्रेणी सुरक्षा प्राप्त विधायक की हत्या से क्रिमिनल कानून पर प्रश्नचिन्ह
(मात्र 50 हजार रुपए में हत्या से भारतीय कानून के प्रति अपराधियों का नजरिया समझा जा सकता है)
इंदौर। कौन करता है भारतीय रूपयों का अवमूल्यन हुआ है । मात्र 50 हजार रुपए में वाय श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त करने वाला एक विधायक एवं पूर्व मंत्री बाबा सिद्दीकी की हत्या ने यह साबित कर दिया है कि भारत में व्यक्ति की जान से अधिक मूल्य भारतीय रुपए का है। यह घटना यह भी बताती है कि भारतीय कानून के प्रति देश के सामाजिक और गुंडा तत्व में कितना भय व्याप्त है और क्रिमिनल ट्रायल में बड़ी होने की असीम संभावनाएं व्याप्त है क्योंकि गवाह ढूंढने से नहीं मिलेंगे और मिल गए तो कोर्ट में पक्ष द्रोही अर्थात हॉस्टाईल हो जाएंगे। कुछ समय की ट्रायल के बाद आरोप सिद्ध नहीं होने की वजह से अथवा संदेह का लाभ मिलने से बड़े से बड़े गंभीर से गंभीर किस्म के अपराधों में भी अपराधी आसानी से बाहर आ जाते हैं। इसी तथ्य पर कानूनी रिसर्च करते हुए इंदौर के एडवोकेट एवं लाॅ एक्सपर्ट पंकज वाधवानी ने देश के प्रधानमंत्रीऔर केंद्रीय कानून मंत्री को विटनेस प्रोटक्शन एक्ट कानून बनाने की मांग की है।
अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, इटली, जर्मनी, फ्रांस जैसे देशों में विटनेस प्रोटक्शन कानून कई सालों से पारित होकर लागू है
पत्र में एडवोकेट पंकज वाधवानी ने जानकारी देते हुए बताया है कि यह आश्चर्य का विषय है की भारत में गवाहों के संरक्षण के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया है । किसी गवाह को मुकदमे के दौरान मिलने वाली धमकी अथवा समस्या के लिए स्थानीय पुलिस को आवेदन करना होता है यहां तक की संगठित अपराधों में भी गवाह के लिए कोई कानूनी ठोस उपचार उपलब्ध नहीं है,जबकि विश्व के विभिन्न देशों जैसे कनाडा,हांगकांग, आयरलैंड, इजरायल, इटली, इंग्लैंड, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में ना सिर्फ गवाहों की सुरक्षा के लिए अधिनियम बनाया गया है बल्कि उनकी पहचान को सार्वजनिक ना किए जाने संबंधी नियम तथा गवाहों को विशेष ट्रेनिंग आदि की व्यवस्था भी की गई है। हांगकांग में विटनेस प्रोटेक्शन यूनिट बनाई गई है और हांगकांग पुलिस फोर्स के माध्यम से यह गवाहों को सुरक्षा प्रदान करती है, वही इजरायल में वर्ष 2008 में विटनेस प्रोटेक्शन अथॉरिटी की स्थापना की गई जो कि मिनिस्ट्री ऑफ पब्लिक सिक्योरिटी के तहत कार्य करती है। इसराइल में विटनेस सिक्योरिटी प्रोग्राम चलाया जाता है जिसका मुखिया देश का अटार्नी जनरल होता है।
हत्या के मामलों में 10% और रेप के मामलों में 12% को ही मिल रही है सजा
देश के प्रधानमंत्री एवं केंद्रीय कानून मंत्री को प्रेषित पत्र में अधिवक्ता पंकज वाधवानी ने लिखा है कि न्याय तक पहुंचने के लिए राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त मार्ग जो बनाया गया है उसे विधि कहा जाता है। न्याय प्राप्ति के लिए विधि या कानून के अंतर्गत उचित विचारण की व्यवस्था हेतु समस्त प्रयास किए जाते रहे हैं। बदलते सामाजिक परिदृश्य एवं सामाजिक मूल्यों के तहत उचित विचारण की व्यवस्था में भी बदलाव न्याय की दृष्टि के लिए नितांत आवश्यक है। संसाधनों की कमी अथवा परंपरागत व्यवस्था को आधार बनाकर परिवर्तन अथवा संशोधन न करना न्याय को अस्वीकार करने जैसा है। वर्तमान में ताजा आंकड़ों के तहत यह आश्चर्यजनक बिंदु उभरकर आया है कि अपराधिक प्रकरणों में हत्या के मुकदमों में कन्विक्शन रेट अर्थात दोषसिद्धि दर मात्र 10% एवं बलात्कार के मुकदमों में कन्वेक्शन रेट मात्र 12%है,तथा इसका प्रमुख कारण गवाहों का पक्षद्रोही अर्थात होस्टाइल हो जाना है। गवाहों वह उनके परिवार को पर्याप्त सुरक्षा का अभाव, शारीरिक क्षति की धमकियां, असुविधा एवं अनावश्यक स्थगन विलंब की वजह से गवाह अभियोजन का सहयोग नहीं करते और अपने कथनों से पलट जाते हैं जिससे अपराधिक तत्व को सजा नहीं हो पाती है।
विटनेस के हॉस्टाईल होने के कारण
गवाहों के पक्षद्रोही हो जाने के पीछे सर्वाधिक कारण आपराधिक तत्वों से भय अथवा धमकी प्राप्त होना है। विचारण के पूर्व अनुसंधान के समय विचारण के दौरान तथा विचारण समाप्त हो जाने के उपरांत गवाह को न्यायालय के अंदर एवं बाहर सुरक्षा की कमी पक्षद्रोही साक्षी के लिए उत्तरदाई परिस्थितियां है साथ ही विचरण में हो रहे अप्रत्याशित विलंब एवं गवाहों की पहचान उनका पता उजागर हो जाने की स्थिति भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार तत्व है। एडवोकेट पंकज वाधवानी का कहना है कि आपराधिक तत्वों का अधिक प्रभावशाली होना, गवाहों को धमकाना ,रुपए आदि का प्रलोभन देकर अपने पक्ष में गवाही हेतु प्रोत्साहित करना आदि ऐसे हथकंडे होते हैं जो कि गवाह को अभियोजन के पक्ष में गवाही नहीं देने हेतु प्रेरित करते हैं और जिसका परिणाम अपराधी की दोषमुक्ति होता है जिससे पीड़ित के मन में देश के कानून के प्रति अनास्था का भाव तो उत्पन्न होता ही है साथ ही आपराधिक दर में भी वृद्धि होती है।राष्ट्रीय विधि आयोग द्वारा अपनी 14 वी, 154 वी,178 वी तथा 198 वी रिपोर्ट में गवाहों की सुरक्षा के लिए अनेक बार सिफारिशें एवं विभिन्न तरीके बताए हैं। यहां तक कि वर्ष 2004 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी गवाहों की सुरक्षा के संदर्भ में मार्गदर्शक सिद्धांतों का उल्लेख किया गया था जिसका पालन नहीं किया जा रहा है।
वर्तमान में अनेक अपराधी अपराध करने के बाद भी न्यायालय में विचारण के उपरांत दोषमुक्त हो जाते हैं और छूट जाते हैं जिससे वह नए अपराध करने में डरते नहीं है यह प्रवृत्ति समाज के लिए अत्यंत ही घातक है।अपराधिक न्याय प्रशासन में सुधार लाने के लिए तथा अभियोजन दोषसिद्धि दर में वृद्धि के लिए गवाहों की सुरक्षा हेतु अधिनियम बनाए जाने की नितांत आवश्यकता है जिससे गवाहों की होस्टाइल होने की प्रवृति पर रोक लगाई जा सके एवं अपराधियों में भी एक भय निर्मित हो जिससे आपराधिक विधि के मूल भावना समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखने की पूर्ति भी की जा सके।