आम चुनाव- भाजपा-कांग्रेस दोनों के लिए सबक – प्रो. डी.के. शर्मा

आम चुनाव का महायज्ञ संपन्न हुआ। नतीजों की भविष्यवाणी करने वाले सभी पंडित धराशायी हो गए; सभी की भविष्यवाणी गलत साबित हुई। परिणाम सभी दलों के लिए अप्रत्याशित रहे। क्रमवार बात करें। यद्यपि भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी किन्तु इस तरह के परिणाम की आशा उसके नेता और कार्यकर्ता को नहीं थी। ये परिणाम भाजपा के लिए सबसे अधिक चौंकाने वाले रहे। भाजपा ही नहीं सभी चुनाव विश्लेषक भी हक्के-बक्के रह गए। उन सबकी की भविष्यवाणी गलत साबित हुई। एक्ज़िटपोल करने में बहुत मेहनत खपाने वाले फेल हो गए। एनडीए के लिए उनकी 400 की भविष्यवाणी फ्लॉप हो गई। लोगों ने उन्हें सही जानकारी नहीं दी। उनसे अधिक असफल तो भाजपा खुद हो गई। भाजपा के चुनाव चाणक्य अपनी नीतियों को परिणाम के रूप में परिवर्तित नहीं करवा सके। वोटर्स ने उन्हें गच्चा दे दिया। गलती उम्मीदवारों के चयन में भी हुई होगी। चुनाव प्रचार में तो निष्क्रियता साफ दिखाई दे रही थी। सब मोदी के नाम के भरोसे बैठे थे। भरोसा था कि अधिकतर वोट मोदी के नाम से मिल जाएंगे। बूथ लेवल पर प्रचार की सक्रियता कहीं नहीं दिखाई दी। इसीलिए अप्रत्याशित असफलता भाजपा को मिली। यद्यपि एनडीए को बहुत मिल गया, लेकिन नीतिश और नायडू भरोसेमंद साथी नहीं है। वे पूर्व में भी भाजपा को गच्चा दे चुके हैं। बहुमत के लिए भाजपा को केवल 30 सीट की कमी है किन्तु यह भी कष्ट दायक हो सकती है। इस परिणाम से मोदी की आभा निश्चित रूप से कम होगी। भाजपा के चुनाव चाणक्य भी असफल हुए हैं। उनका पार्टी पर दबदबा निश्चित रूप से कम होगा। सरकार तो बन जाएगी किन्तु उस असफलता से भाजपा को सबक लेना चाहिए। केवल मोदी के नाम से पत्थर तैराने की नीति सही नहीं है।
कांग्रेस को अप्रत्याशित सफलता मिली। कांग्रेस गद्-गद् है। होना भी चाहिए। इतनी सफलता की आशा किसी ने भी नहीं की थी। शायद राहुल गांधी स्वयं ने भी नहीं। राजनीति के पंडित यहां भी पीट गए। परिणाम की सभी भविष्यवाणियां गलत साबित हुई। कांग्रेस को सबक लेना चाहिए कि केवल मुसलमानों के भरोसे बहुमत नहीं पाया जा सकता। यद्यपि हिन्दुओं के वोट भी कांग्रेस को मिले हैं किन्तु जितने चाहिए उतने नहीं। कांग्रेस ने अपनी छवि हिन्दु विरोधी बना ली है। स्वाभाविक है – कांग्रेस का नेतृत्व हिन्दु है भी नहीं। नेहरू के जमाने से ही हिन्दु विरोध कांग्रेस का मूलमंत्र रहा है। हिन्दुओं को साथ लेना उनकी मजबूरी है क्योंकि अभी तो देश में बहुमत हिन्दुओं का है। बिना सक्रिय कार्यकर्ताओं के कांग्रेस ने अच्छी सीटे प्राप्त कर ली। इसकी आशा उन्हें स्वयं भी नहीं थी। भविष्य में और अधिक सफलता पाने के लिए कांग्रेस को अपनी नीति और नीयत दोनों में परिवर्तन करना होगा।
समाजवादी पार्टी का जातिवाद काम कर गया। मुस्लिम वोटर तो हमेशा उनके साथ रहे ही हैं। यदि ये पार्टी हिन्दु विरोध छोड़कर कुछ ओर समर्थन प्राप्त कर सकें तो आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को अच्छी टक्कर दे सकती है। केवल मुस्लिम और जाट वोटर के भरोसे बहुमत नहीं पाया जा सकता। अखिलेश के लिए आनंदित होने का समय है। 37 सीटों के साथ इंडी में भी अखिलेश यादव महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
इन परिणामों से सबसे अधिक सबक लेने की आवश्यकता भाजपा को है। उन्हें अपनी नीतियों पर पुर्नविचार करके अपने समर्थकों पर अधिक ध्यान देना चाहिए क्योंकि उनकी सरकार की आर्थिक नीतियों का सबसे अधिक लाभ लेने वाले हमेशा उनके विरोध में मत देते हैं।