चुनाव प्रचार चरम पर है। सभी दलों के नेता बढ़ – चढ़कर घोषणाएं और वादे कर रहे हैं। वे यह विचार भी नहीं कर रहे हैं कि इनकी घोषणाओं को कितना लागू किया जा सकता है। राहुल गांधी सबसे आगे हैं। आज कल वे बहुत विघटनकारी विचार प्रस्तुत कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि यदि वे सत्ता में आए तो उनकी सरकार जनगणना करवाकर सम्पत्ति का वितरण जनसंख्या के आधार पर करवाएगी। घोषणा करते समय राहुल यह विचार नहीं करते कि उनकी घोषणा को कितना लागू किया जा सकता है। पिछले चुनाव में भी मंदसौर जिले के एक कस्बे में मोबाइल फैक्ट्री बनाने की घोषणा की थी। ऐसा ही उन्होंने भोपाल में भी कहा था। यदि उनकी सरकार बन जाती तो भी उनकी घोषणा को क्रियान्वित नहीं किया जा सकता। सब जानते है कि 10 वर्ष की यूपीए सरकार के समय उन्होंने केवल एक क्रांतिकारी काम किया था- सरकार द्वारा तैयार किया गया अध्यादेश फाड़कर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सामने फेंक दिया था।
राहुल गांधी का सम्पत्ति का पुनः वितरण करना साम्यवाद का मूल सिंद्धात रहा है। पूरी दुनिया जानती है कि साम्यवाद एक अवास्तविक-अमानवीय विचार है और असफल हो चुका है। साम्यवाद अधिनायकवाद ही है। सर्वविदित है कि मार्क्स द्वारा प्रतिपादित साम्यवाद लेनिन द्वारा रूस में लागू किया गया था। बाद में स्टालिन ने साम्यवाद के नाम पर निर्दयता पूर्वक देश वासियों को मारा था। परिणाम स्वरूप रूस आर्थिक दृष्टि से बहुत कमजोर हो गया। मिखाइल गोर्बाचेव ने साम्यवादी अधिनायकवाद की बुराईयों को समझा और देश को उदार साम्यवाद की ओर ले गए। अधिनायकवाद मानवता का दुश्मन है। चाइना में मानवता की हत्या की पराकाष्ठा हम देख ही रहे हैं। वहां मंत्री गायब हो रहे हैं। वहां का सबसे बड़ा उद्योगपति जेक मा को गायब कर दिया गया। कोई नहीं जानता कि इनका क्या हुआ? समय-समय पर इस अमानवीय व्यवस्था का विरोध चीन में भी होता रहा है। 1989 तियानानमेन चौक में विद्यार्थियों ने जौरदार-प्रभावी विरोध प्रदर्शन साम्यवादी अधिनायकवाद के खिलाफ किया था। तब सरकार ने हजारों विद्यार्थियों को निर्दयतापूर्वक मार दिया था।
एक उदाहरण कम्बोडिया का भी है। वहां के डिक्टेटर पोल पोट ने 1975 से 1979 तक कठोर डिक्टेटरशिप लागू की थी। उसमें अमीरों का पैसा छिनकर गरीबों में बांट दिया था। नतीजे में पूरा देश गरीब हो गया और उद्योग-धंधे बंद हो गए। देश में गरीबी और बेरोजगारी नियंत्रण के बाहर हो गई। ऐसे कई देशों के उदाहरण दिए जा सकते हैं। अफ्रीका के कई देशों में डिक्टेटर की वजह से बर्बादी हुई। युगांडा में ईदी अमीन की बर्बरता को इतिहास कभी बुला नहीं सकेगा।
वास्तव में यह विचार सेम पित्रोदा का है। वे राजीव गांधी के भी सलाहकार रहे हैं। कुछ दिन पूर्व उन्होंने कहा था कि मृत्यु के बाद व्यक्ति की 50% संपत्ति छीनकर गरीबों में बांट देना चाहिए। राहुल गांधी ने इसी विचार को आगे बढ़ाया है। इस तरह नकल करने का विचार बहुत घातक होता है। सभी देशों की सामाजिक व्यवस्था एक जैसी नहीं होती। आचार-विचार अलग-अलग होते हैं। वैसे भी साम्यवादी विचार पूरे विश्व में असफल हो चुका है। इस विचारधारा ने आम लोगों को कष्ट के अलावा कुछ नहीं दिया। यह विचार डिक्टेटरशिप के अतिरिक्त कुछ नहीं है। असंख्य लोगों का खून बहाकर भी यह सफल नहीं हुई है।
राहुल गांधी का विचार बहुत खतरनाक है। जनगणना से समाज में विभाजन होगा। यह अराजकता लाने की कोशिश है। तेजी से आर्थिक उन्नति कर रहा भारत गरीब हो जाएगा। यह नहीं भूलना चाहिए कि देश के बड़े-बड़े उद्योगों से असंख्य लोगों को रोजगार मिलता है। यदि राहुल का विचार लागू किया गया तो उद्योग बंद हो जाएंगे, बेरोजगारी बहुत बढ़ जाएगी। वर्तमान में तेजी से विकास कर रही अर्थव्यवस्था पाकिस्तान की तरह दीवालिया हो जाएगी। परन्तु राहुल गांधी को इन सबसे क्या फर्क पड़ता है। देश बर्बाद और गरीब हो जाए तो भी क्या? वे तो अपनी ऐश की जिंदगी जीते रहेंगे। उन्हें तो बस सत्ता चाहिए, कैसे भी किसी भी तरह।