मिर्गी सिर्फ एक क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर, उपचार से निदान संभव
इंदौर। इंसान के शरीर में मष्तिष्क बेहद जटिल अंग माना जाता है, जितनी जटिल इसकी काम करने की विधि है उतने ही जटिल इसके रोग भी। ऐसा ही रोग है एपिलेप्सी जिसे आम बोल चाल की भाषा में मिर्गी के नाम से जाना जाता है। मिर्गी एक क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जिसमें मस्तिष्क असामान्य रूप से कार्य करता है, जरूरत से ज्यादा विद्युतीय गतिविधि के कारण व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन होने लगता है। बार-बार दौरे पड़ते हैं, व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह अनियंत्रित हो जाता है और शरीर असामान्य हो जाता है। मिर्गी को लेकर कई भ्रम और अंधविश्वास मौजूद है। इसके प्रति जागरूकता फैलाने के लिए हर साल फरवरी के दूसरे सोमवार को इंटरनेशनल एपिलेप्सी डे मनाया जाता है। इस वर्ष 12 फरवरी को पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय मिर्गी दिवस मनाया जाता है। इस साल एपिलेप्सी डे की थीम ‘माइलस्टोन्स ओन माय एपिलेप्सी जर्नी’ है जिसका उद्देश्य मिर्गी का सफल उपचार कराना और इसकी स्थिति पर बारीकी से नजर रखना है।
शैल्बी मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल, इंदौर के कंसलटेंट न्यूरो फिजिशियन डॉ. अमित माहेश्वरी के अनुसार, “मिर्गी एक ऐसी समस्या है जो पुरुष और महिला किसी को भी हो सकती है, यह दौरे शरीर के किसी एक हिस्से या पूरे शरीर को प्रभावित कर सकते हैं। बेहोशी, हाथ-पैरों में झटके, आँखों में पलटना, भ्रम, याददाश्त कमजोर होना, बोलने में कठिनाई, डर या चिंता, सांस लेने में परेशानी, पेट में दर्द मिर्गी के प्रमुख लक्षण है। मस्तिष्क में या सिर में लगी चोट, मस्तिष्क मेनिन्जाइटिस या एन्सेफलाइटिस के जैसे संक्रमण, जन्मजात विकार, मस्तिष्क में आक्सीजन की कमी होना, असामान्य मस्तिष्क का विकास, जन्म के समय शिशु को ट्रॉमा लगना, मस्तिष्क की गांठ, पारिवारिक मिर्गी का इतिहास, मस्तिष्क का संक्रमण यानी ब्रेन एब्सेस भी मिर्गी के प्रमुख कारण हो सकता है। इसके अलावा स्ट्रोक, ट्यूमर, मस्तिष्क में रक्तस्राव और मादक द्रव्यों के सेवन से भी मिर्गी की समस्या उत्पन्न हो सकती है। वैसे तो मिर्गी का कोई इलाज नहीं है, लेकिन दवाओं और अन्य उपचारों से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए कई प्रकार की दवाएं उपलब्ध हैं। इसके अलावा सर्जरी जीवनशैली में बदलाव से इस स्थिति को सुधारा जा सकता है। पर्याप्त नींद लेना और तनाव को कम करना, मिर्गी के दौरे को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।
शैल्बी मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल, इंदौर के कंसलटेंट न्यूरोसर्जरी डॉ. अभिषेक सोनगरा के अनुसार, “मस्तिष्क के दायें और बायें हिस्से में स्थित हिप्पोकैम्पस नामक एक विशेष तंत्र याद्दाश्त और भावनाओं को नियंत्रित करता है। बचपन में बुखार के साथ आने वाली मिर्गी, संक्रमण, सिर की चोट आदि कारणों से हिप्पोकैम्पस में धीरे-धीरे एक विकार उत्पन्न हो जाता है, जिसे मीसीयल टेम्पोरल स्केलोरोसिस (एमटीएस) कहा जाता है। इस विकार के कारण बार-बार दौरे आते हैं जो दवाओं द्वारा नियंत्रित नहीं हो पाते हैं। जिन मिर्गी के मामलों में दवा का असर कम होता है या दवाइयां बेअसर होती हैं, उन्हें रिफ्रेक्टरी एपिलेप्सी कहा जाता है। ऐसे मामलों में सर्जरी का विकल्प दिया जाता है। इस बीमारी के बेहतर इलाज के लिए मस्तिष्क की एपिलेप्सी सर्जरी होती है। सर्जरी द्वारा एमटीएस का इलाज करने से लगभग 70 से 80 प्रतिशत रोगी ठीक होकर दवाईमुक्त हो जाते हैं। भारत में, सर्जरी की सुविधा अभी बड़े शहरों में ही उपलब्ध है, शैल्बी हॉस्पिटल इंदौर में सारी सुविधाएँ उपलब्ध है जिनसे मिर्गी के रोगियों को बेहतर उपचार दिया जा सकता है।“
शैल्बी मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल, इंदौर के कंसलटेंट न्यूरोसर्जरी डॉ. संदीप मूलचंदानी बताते है कि, “मिर्गी केवल एक न्यूरोलॉजिकल विकार है। यदि मिर्गी में दवाइयां काम नहीं कर रही हैं, वीडियो ईईजी, 24 घंटे निरंतर ईईजी मोनिटरिंग, परफ्यूजन स्कैन, एमआरआई ट्रैक्टोग्राफी और एमआरआई मिर्गी प्रोटोकॉल जैसे आधुनिक तरीके काम में आ सकते हैं। ये डायग्नोस्टिक टेस्ट इंदौर के शैल्बी हॉस्पिटल में उपलब्ध हैं। इन तरीकों से मिर्गी के फोकस का पता लगा सकते हैं, और इसके उपचार की सटीक और सुरक्षित योजना बना सकते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश 21वीं शताब्दी में भी, मिर्गी रोग अंधविश्वास और गलत धारणाओं से घिरा हुआ है। कई लोग इसे जादू-टोने या ऊपरी चक्कर का परिणाम मानते हैं, जिसके कारण रोगियों को सामाजिक कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। लोगों को यह जानकारी देना महत्वपूर्ण है कि मिर्गी केवल एक चिकित्सीय स्थिति है जिसका इलाज संभव है। एक स्टडी के अनुसार भारत में, हर 100 में से 1 व्यक्ति मिर्गी रोग से पीड़ित है। लेकिन इनमें से केवल 5% लोगों को ही उचित इलाज मिल पाता है। मिर्गी के रोगी की दशा और दौरे की गंभीरता पर निर्भर करता है। मिर्गी का इलाज संभव है, लेकिन इसके लिए नियमित दवा का सेवन आवश्यक है। रोगियों को डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाओं को समय पर और सही मात्रा में लें, नियमित रूप से डॉक्टर से जांच कराते रहें कोई भी लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।“