_”सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” के पुरोधा को देश का सर्वोच्च सम्मान_
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*भारत के “लाल” बने आडवाणी*
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_देश की राजनीति को पूरी तरह बदलने वाले “रथी” बने “भारत रत्न”_
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_भारतीय राजनीति में जेपी के बाद लालकृष्ण ही रहे बदलाव का प्रतीक_
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_राम जन्मभूमि आंदोलन को जन जन तक पहुचाने वाले रथयात्री को मंदिर बनते ही हुआ मान_
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_अटल की नाराजगी के बाद मोदी की ढाल बने थे लालकृष्ण, गुरु-शिष्य सा रहा नाता_
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*नितिनमोहन शर्मा*
_*अब वे “स्मृति लोप” के शिकार हैं। बीता हुआ कल, अब उनके स्मृति पटल से बिसरता जा रहा हैं। उनके समक्ष चेहरे अनगिनत हैं, पर मुश्किल से पहचाने जाते हैं। भारत की राजनीति में वे क्या कर गुज़रे, इसका स्मरण भी धीमे धीमे विस्मरण हो रहा हैं। लेकिन ये देश उन्हें विस्मृत कैसे कर सकता हैं? आजाद भारत की राजनीति के आमूलचूल बदलाव के वे प्रतीक रहे हैं। वोट की राजनीति को ” वाम मार्ग” से ” दक्षिण मार्ग” पर वे ही लाये। अन्यथा क्या आज नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री होते? क्या भाजपा आज दुनियां का सबसे बड़ा राजनीतिक दल होता? क्या देश की राजनीति में “बहुसंख्यक” कभी “पूजाते”? ” हिंदुत्व” देश की राजनीति का धुव्र केंद्र बनता? राम जन्मभूमि पर ऐसा भव्य, अनूठा, अनुपम मन्दिर बनता और ” रामलला विराजमान” होते? ऐसे एक नही अनेक सवाल है, जिनका जवाब एक ही है- लालकृष्ण आडवाणी नही होते तो ये कुछ भी सम्भव नही था।*_
_*वे भाजपा के एकमात्र ऐसे नेता रहे जिन्होंने अपने पुरुषार्थ से अपने दल को इतना ताकतवर बनाया कि वो भारत की राजनीति में ” अछूत” नही रहा। ये उनकी ही कार्यनीति का ही परिणाम है कि उनका दल आज सर्वव्यापी व सर्वस्पर्शी हो गया हैं। ये उनकी उम्र के 64 वे बरस में की उस रथयात्रा का ही परिणाम है कि यह देश- दुनिया के चप्पे चप्पे में राम नाम गूंज रहा हैं। इस ” राम रथी” का ही विजन था जिसने अपनी सोमनाथ से अयोध्या वाली रथयात्रा कर देश को “मण्डल” की जगह “कमण्डल” से जोड़कर ” सनातन ” को जातियों में बटने नही दिया। जब देश को जातियों में विभाजित कर राजनीति मंसूबे करने की होड़ थी, तब इस व्यक्तित्व ने ” राष्ट्रवाद” का शंखनाद किया। ” सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ” का उनका दिया नारा ही हिंदुव की राजनीति का अपरोक्ष प्रतीक बन गया।*_
_*”लौहपुरुष” की संज्ञा या नाम भारत मे किसी अन्य नेता को दिया जा सकता है? सरदार वल्लभ पटेल से लालकृष्ण आडवाणी की तुलना की गई। वे पटेल जैसे ही सख्त अनुशासन प्रिय और दो टूक, कड़े फैसले के लिए जाने गए। भाजपा में भी वे नेता और कार्यकर्ताओं के बीच कड़क छवि के रूप में ही जाने गए। आडवाणी जैसे नेता के कारण ही भाजपा को ” पार्टी विथ ए डिफरेन्स” की संज्ञा मिली। राम मंदिर आंदोलन उनकी जीवटता और जिजीविषा का जीवंत प्रतीक हैं। उनकी सादगीपूर्ण जीवन शैली और दिनचर्या भी अन्य के लिए उदाहरण हैं। वे उम्र के इस पड़ाव पर भी शारिरिक रूप से फ़ीट है।*_
_*आज के हिंदुत्व के नायक नरेंद्र मोदी को गढ़ने वाले आडवाणी ही है। अगर आडवाणी का वरदहस्त नही होता तो मोदी कब के नेपथ्य में गुम हो गए होते। आडवाणी ने मोदी के लिए अटल जी से तक मुक़ाबका कर लिया लेकिन अपने ” नरेंद्र” पर आंच नही आने दी। गुजरात दंगों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी से नाराज हो गए थे। अटलजी का मानना था गुजरात मे ” राजधर्म” का पालन नही हुआ। तब आडवाणी ही मोदी की मजबूत ढाल बने थे। आज उसी का परिणाम है कि उनका ” नरेंद्र ” ही उनके लिए भारत का सर्वोच्च सम्मान लेकर उनकी चोखट पर पहुँचा।*_
_*1927 में पाकिस्तान में जन्मे लालकृष्ण आडवाणी उम्र के 97 वे पड़ाव में भारत के रत्न हो गए। वे “भारत रत्न” के साथ देश के सर्वोच्च सम्मान के हक़दार और “भारत के लाल” भी बने। उनको ये सम्मान भारत की राजनीति में अतुलनीय योगदान के साथ साथ सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में किये गए अनेकानेक कार्यो की वजह से दिया गया है। कांग्रेस सहित समूचे विपक्ष ने भी सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया। सिवाय ओवेसुद्दीन ओवेसी और अखिलेश यादव के।*_
_*दोनों की अपनी राजनीतिक मजबूरी हो सकती है लेकिन देश की राजनीति को ये नही भूलना चाहिए कि ये वो ही आडवाणी है जो जिन्ना की मजार पर गए थे और उनके योगदान की सराहना की थी। ये जानते हए भी कि इस साफगोई का उन्हें राजनीतिक नुकसान भी उठाना पड़ेगा। लेकिन वे सच, साहस के साथ कहने से चुके नही। भारत आकर उन्हें इसका नुकसान उठाना भी पड़ा। उनकी मातृसंस्था भी नाराज हुई और पार्टी केडर भी। लेकिन आडवाणी विचलित नही हुए और पाकिस्तान में जो बोला उस पर कायम रहें।*_
_*राजनीतिक शुचिता के वे सदैव पक्षधर रहें हैं। सोनिया गांधी जी इस बात को अच्छे से जानती है। ये आडवाणी की ही भद्रता थी कि उन्होंने अटलजी के साथ मिलकर उस वक्त सोनिया को “विदेशी बहु” के संकट से दूर किया जब इसी शब्द के साथ सोनियाजी की राजनीतिक घेराबंदी घनघोर थी। तब उन्होंने अपने ही दल में ये बात स्थापित की थी कि अब वे भारत की बहू है क्योंकि वे ” परण ” कर यहां आ गई हैं। उसके बाद से भाजपा की तरफ से इस तरह का “प्रचार” नही हुआ।**_
_*आडवाणी जी ने इस सम्मान को देश को ही समर्पित किया। देश के नाम सन्देश में उन्होंने वो ही कहां, जो उनकी मातृसंस्था से घुटी में मिला था- ये मेरा जीवन राष्ट्र का ही हैं। अपना सर्वस्व जीवन माँ भारती की सेवा और राष्ट्र देवता की आराधना में समर्पित करने वाले भारत के इस वयोवृद्ध ” लाल” को पक्का इंदौर की अनंत शुभकामनाएं।