रितेश मेहता
रतलाम। शहर विधानसभा चुनाव रोचक भी है और नहीं भी भाजपा ने अपने वर्तमान विधायक और योजना आयोग के उपाध्यक्ष चैतन्य काश्यप को तीसरी बार अपना प्रत्याशी बनाया। कांग्रेस ने घिसे पिटे खोटे सिक्के पारस सकलेचा दादा पर अपना दाव लगाया है जो पूर्व में महापौर और शून्य चुनाव घोषित होने वाले विधायक रहे।
2008 मैं इन्होंने तत्कालीन गृह मंत्री हिम्मत कोठारी को करीब 2000 मतों से हराया था किंतु बाद में उच्च न्यायालय द्वारा इनका चुनाव शून्य घोषित कर दिया गया था।
2013 के चुनाव में भाजपा के चैतन्य काश्यप के सामने 35000 मतों से धूल चाटनी पड़ी फिर भी इनकी राजनीतिक लालसा कम नहीं हुई और एक बार फिर भाजपा के चैतन्य काश्यप के सामने कांग्रेस से चुनावी मैदान में है।
पारस सकलेचा उर्फ़ दादा का राजनीतिक आकलन करें तो पता चलता है कि यह किसी भी एक विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध नहीं रहे। इन्होंने मंदसौर से आम आदमी पार्टी की ओर से लोकसभा चुनाव भी लड़ा वहां भी इन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। इन्होंने किसी तरह पद प्राप्त कर निजी उपलब्धि पर अधिक ध्यान दिया। विधायक के रूप में पार्टीयां देकर भोपाल के राजनीतिक गलियारे में पैठ बनाने की असफल कोशिश भी इनके द्वारा की गई किंतु रतलाम शहर के लिए विधायक के रूप में कोई भी महत्वपूर्ण कार्य नहीं किया।
ऐसे असफल व्यक्ति पर कांग्रेस ने अपनी प्रतिष्ठा दाव पर क्यों लगाई यह समझ से परे हैं उचित होता यदि कांग्रेस महापौर चुनाव में चुनौती देने वाले व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाती।
“वर्तमान परीस्थिति में कांग्रेस प्रत्याशी पारस सकलेचा उर्फ दादा की रतलाम शहर विधानसभा से जीतने की कोई संभावना नहीं लगती”
वर्तमान विधायक भाजपा प्रत्याशी चैतन्य काश्यप ने शहर के विकास में अति महत्वपूर्ण योगदान दिया इस बात को आम नागरिक भी स्वीकार करते है।