बड़ी आंत की दुर्लभ बीमारियों पर रिसर्च पेपर्स को समर्पित रहा ACRSICON 2023 का अंतिम दिन

ACRSICON 2023 के तीसरे और अंतिम दिन

*बड़ी आंत की दुर्लभ बीमारियों पर रिसर्च पेपर्स को समर्पित रहा ACRSICON 2023 का अंतिम दि*

• जीआईएसटी केस, कॉम्प्लेक्स फिस्टुला, ट्यूबरक्यूलस एनल फिस्टुला जैसी बीमारियों पर विस्तार से चर्चा हुई
• ग्रुप डिसकशन हुए और पोस्टर प्रेज़ेन्टैशन सेशन का आयोजन हुआ।

*इंदौर।* इंदौर में एसोसिएशन ऑफ कोलन एंड रेक्टल सर्जन्स ऑफ इंडिया की तीन दिवसीय 46वीं एनुअल नेशनल कांफ्रेंस – ACRSICON 2023 के तीसरे और अंतिम दिन बड़ी आंत की दुर्लभ बीमारियों को समर्पित रहा, जिसमें रिसर्च पेपर्स पढे गए, ग्रुप डिसकशन हुए और पोस्टर प्रेज़ेन्टैशन सेशन का आयोजन हुआ।

इस कांफ्रेंस का आयोजन इंदौर की जीआई प्रोक्टो सर्जन सोसाइटी द्वारा एसोसिएशन ऑफ सर्जन्स ऑफ इंडिया (एएसआई) इंदौर सिटी चैप्टर के सहयोग से हो रहा है। कांफ्रेंस के तीसरे दिन रेयर जीआईएसटी केस, कॉम्प्लेक्स फिस्टुला, ट्यूबरक्यूलस एनल फिस्टुला पर चर्चा हुई।

ऑर्गेनाइजिंग चेयरमैन डॉ. अशोक लड्ढा ने कहा कि कान्फ्रेंन्स में 600 से ज्यादा कोलन और रेक्टल सर्जरी के अनुभवी और कुशल सर्जन्स की तीनों दिन उपस्थिति और अलग अलग प्रासंगिक सत्रों में उनकी रुचि के अनुसार सक्रिय भागीदारी, कार्यशालाओं और चर्चाओं से सीखने – सिखाने का जो माहौल यहाँ देखने को मिला, वह इस बात का महत्वपूर्ण संकेत है कि नेशनल कांफ्रेंस सफल रही।

ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी, लैपरोस्कोपिक एवं गैस्ट्रोइन्टेस्टिनल सर्जन डॉ. सी. पी. कोठारी के अनुसार किसी भी कॉन्फ्रेंस का अंतिम लक्ष्य रोगियों को बेहतर इलाज और देखभाल प्रदान करने के लिए नई जानकारी, तकनीक और प्रौद्योगिकियों के साथ हमारे प्रोफेशनल सर्जन्स को सशक्त बनाना होता है और यह कॉन्फ्रेंस इन सभी पैमानों पर खरी उतरी है।
ऑर्गेनाइजिंग ट्रेज़रर, लैपरोस्कोपिक, कोलोरेक्टल एवं जनरल सर्जन डॉ. प्रणव मंडोवरा ने कहा कि एक कुशल सर्जन अपना सिर्फ पढ़ाई से ज्ञान नहीं अर्जित कर सकता, इसके लिए लैटस्ट ऐड्वान्स्मेन्ट, रिसर्च, डायग्नोसिस और स्किल की अधिक से भी अधिक अभ्यास की आवश्यकता होती है।

ऑर्गेनाइजिंग जॉइन्ट सेक्रेटरी, लैपरोस्कोपिक एवं कोलोरेक्टल सर्जन डॉ अक्षय शर्मा ने कहा कि उम्मीद है कि नई तकनीकों और प्रैक्टिस के बारे में सीखने – सिखाने के सेशन से प्रतिभागी नए दिशानिर्देशों को अपनाकर, एक दूसरे को सहयोग कर रिसर्च प्रोजेक्ट्स में शामिल हो सकें।