–मना शिव पार्वती विवाहोत्सव
इंदौर, । भक्ति का उदगम मन से होता है, क्योंकि मन ही मंदिर और परमात्मा का स्वरूप है इसीलिए मन की मलीनता दूर करना हमारा पहला लक्ष्य होना चाहिए। भक्ति की पात्रता के लिए कोई किताब या डिग्री नहीं होती। श्रद्धा स्थिर और विश्वास अटल होना चाहिए, क्योंकि ये दोनों शिव और पार्वती के प्रतीक हैं। श्रद्धा का सृजन सत्संग से होगा। श्रद्धा और विश्वास धर्म के दो स्तंभ हैं। जितनी हमारी श्रद्धा बढ़ेगी, भगवान भी उतना ही हमारे निकट आएंगे। शिव और शक्ति के बिना सृष्टि का संचालन संभव नहीं है। श्रद्धा का सृजन मन के विचलन को कम कर देता है।
कथा में आज शिव पार्वती विवाह का उत्सव धूमधाम से मनाया गया। भगवान शिव दूल्हे के रूप में अपने भूत-प्रेत, चुड़ैल जैसे गणों के साथ बारात लेकर कथा स्थल पहुंचे तो भक्तों ने पुष्प वर्षा कर शिवजी का बारात का स्वागत किया। साध्वी कृष्णानंद के मनोहारी भजनों ने इस उत्सव के आनंद को इस कदर बढ़ा दिया कि समूचा सभागृह नाच उठा.


