समाज लड़कियों की चिंता करे

प्रो. देवेन्द्र कुमार शर्मा, रतलाम

पिछले कुछ दिनों में बहुत दिल दुखाने वाली खबरें आईं। दिल ही नहीं दुखा चिंता भी हुई कि सामाजिक विकृति बहुत बढ़ रही है। पहली खबर अनेक नाबालिग लड़कियों द्वारा गर्भपात करवाने की और दूसरी खबर कई अवयस्क कन्याओं के विवाह की। हम में से अधिकतर इन खबरों को पढ़कर भूल भी गए होंगे, किंतु ये खबरें भूलने योग्य नहीं हैं। कोई भी जागरूक नागरिक ऐसी खबरों को भूल नहीं सकते किंतु हमारा सामाजिक दृष्टिकोण बहुत सीमित और स्वार्थी हो गया है। बुरी से बुरी खबर भी अधिकतर लोगों को उद्वेलित नहीं करती। समाचार पढ़ना और भूल जाना हमारा नियमित दृष्टिकोण हो गया है। सामाजिक सरोकार की भावना लोगों में बची नहीं है। हमें क्या करना- यह हमारा नियमित दृष्टिकोण हो गया है। किताबी शिक्षा बढी किंतु सामाजिक सरोकार की भावना कम होती गई। इसीलिए अवयस्क लड़कियों द्वारा गर्भपात करवाने की खबर से किसी की समाचार पत्र पढ़ते समय पी जाने वाली चाय का स्वाद खराब नहीं होता। गंभीरता से विचार करें तो दोनों खबरें खतरनाक है और समाज को इन्हें गंभीरता से लेना चाहिए, इन पर विचार करना चाहिए। हमें इन खबरों से समाज पर होने वाले दुष्प्रभाव को समझना चाहिए और इन्हें रोकने की संभावनाओं को तलाशना चाहिए।
पहली खबर – कई अवयस्क लड़कियों ने गर्भपात करवाया। खबर बहुत खतरनाक है और सामाजिक व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा है। सभी समझदार नागरिकों को ऐसी खबरों से चिंतित होना चाहिए और उन्हें रोकने की संभावनाओं पर विचार करना चाहिए। विचार ही नहीं प्रयास करना चाहिए कि समाज को इस विकृति और उसके दुष्प्रभाव से कैसे बचाया जाए। पहले विचार करें कि ऐसा क्या हुआ है कि अवयस्क लड़कियां गर्भधारण करने लगी हैं? यह भी विचार करना चाहिए कि एक अवयस्क अविवाहित लड़की द्वारा गर्भधारण करने की परिस्थितियां समाज में क्यों निर्मित होती जा रही है तथा एक अवयस्क लड़की द्वारा गर्भवती होने का उसके परिवार और समाज पर क्या दुष्परिणाम होते हैं। अवयस्क लड़की द्वारा गर्भवती हो जाने के पीछे कई सामाजिक और मानसिक कारण है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार से युवाओं की मानसिकता में बहुत परिवर्तन आए हैं। उनमें से एक परिवर्तन सैक्स के बारे में भी है। सूचना एवं जानकारी के माध्यम बहुत बढ़ गए हैं। मोबाइल उनमें बहुत प्रमुख है। मोबाइल पर अच्छी-बुरी सभी तरह की जानकारियां आसानी से उपलब्ध है। फेसबुक आदि पर नंगे, अभद्र चित्र और विवरण डाले जाते है। यह अनुचित विवरण नासमझ, अवयस्क युवक-युवतियों को बहुत आकर्षित करते है। उनके दुष्परिणाम जाने बिना नासमझ युवा उनके जंजाल में उलझ जाते है। इसी कारण अवयस्क युवतियों द्वारा गर्भपात की खबरें आती रहती है।
बुरी बात यह तो है कि ऐसी खबरें आती है उससे अधिक खतरनाक यह है कि प्रत्येक परिवार यह सोचता है कि हमारे यहां ऐसा नहीं हो सकता। हमारे बच्चे बहुत समझदार है। जब हो जाता है तब रोते हैं, पहले जागते नहीं। एक परिवार में हुई ऐसी अवांछनीय, अशोभनीय घटना से अनेक परिवार प्रभावित होते हैं। प्रश्न यह है कि ऐसी घटनाओं को कैसे रोका जाए। बच्चों को इनसे कैसे बचाया जाए। सभी जानते है कि मोबाइल इस खतरे को बढ़ा रहा हैं। हमने बच्चों को जितनी छूट दे रखी है वह खतरनाक हैं। बच्चे मौका मिलते ही मोबाइल पर कब्जा कर लेते है, वे क्या देखते हैं कुछ पता नहीं चलता। यह संभव भी नहीं हैं कि परिवार का कोई वरिष्ठजन लगातार बच्चे-बच्ची के पास बैठा रहे और अब तो परिवार भी बहुत छोटे हो गए हैं। कई पति-पत्नी दोनों काम करते हैं और बच्चे घर में अकेले रहते है अथवा नौकर के भरोसे रहते हैं। दोनों परिस्थिति खतरनाक है।
आजकल युवक-युवतियों को मित्रों के साथ घूमने-फिरने की बहुत स्वतंत्रता मिल गई हैं। अक्सर इसी स्वतंत्रता का दुरूपयोग हो जाता है और बाद में पछताना पड़ता है। तुरंत समाधान किसी के पास नहीं। इसके लिए माता-पिता की जागरूकता एक उपाय है। अपने बच्चों की गतिविधि पर सजग नजर रखना भी आवश्यक है अन्यथा यह विकृति बढ़ती ही जाएगी।
अनेक बाल विवाह की खबरें भी छपी। बाल विवाह के कई मानसिक और शारीरिक दुष्परिणाम होते हैं। भारत में प्राचीनकाल से ही बाल विवाह प्रचलित रहे हैं। कहते है एक जमाने में बच्चों को गोदी में लेकर विवाह की रस्में पूरी की जाती थी। उस समय इस कुरीति के क्या कारण रहे होंगे यह जानना अब संभव नहीं हैं। निश्चिति रूप से अशिक्षा और अंधविश्वास समाज के विचारों को प्रभावित करते थे किन्तु आज शिक्षा का बहुत प्रसार हो गया है। बाल विवाह के दुष्परिणामों को सभी समझते है फिर भी यह कुरीति समाप्त नहीं हो रही। इसे रोकने के लिए समाज के कर्णधारों, शिक्षाविदों को प्रयास करना चाहिए। आशा है समाज के कर्णधार एवं आमजन इन समस्याओं पर विचार करेंगे और समाधान ढूंढने का प्रयास करेंगे।