संस्कृति की रक्षा संस्कारों से ही संभव है – श्री श्री 108 मुनि श्री सद्भाव सागर जी मसा.

रतलाम 22 अक्टूबर । श्रुति संवर्धन वर्षा योग 2025,श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन मंदिर स्टेशन रोड, रतलाम आचार्य 108 विशुद्ध सागर जी म. सा. के शिष्य मुनि श्री 108 सद्भाव सागर जी म.सा. एवं क्षुल्लक 105 श्री परम योग सागर जी म.सा. द्वारा चंद्रप्रभा मंदिर मे पाट पर विराजित है।
मुनि श्री ने अपने प्रवचन श्रृंखला में कहा कि कई लोग श्रद्धा से मुनियो को चलते-चलते चप्पल उतार कर नमस्कार करते हैं यह साधु की श्रद्धा है इसीलिए जीवन में साधु बनो तो दूसरे की श्रद्धा का ध्यान रखना तो आप अपनी साधुता में जी पाओगे। कभी-कभी दूसरे के मन के अनुसार जीना पड़ेगा। आपका मन तो कभी डावाडोल भी हो सकता है। उस समय अपने मन को छोड़कर दूसरे के मन के अनुसार जीना पड़ेगा। इसलिए निमितों से दूर रहना चाहिए एक अग्नि है एक मक्खन है अग्नि के पास मक्खन रखोगे तो मक्खन पिघलेगा इसलिए हर व्यक्ति को अपने रूप का ध्यान होना चाहिए कि आपका हंसने से भी कोई बाधित हो सकता है ऐसे ही एक बार कोर्ट में अपराधी को सजा सुना रहे थे तो उसने बोला कि उसने अपने जीवन में अपराध नहीं किया और उस समय जो कन्या सामने आई उसने बेढंगे कपड़े पहन रखे थे इस कारण उसकी हंसी आ गई तब कोर्ट ने उसे कन्या को भी दोषी ठहराया तो संस्कृति ऐसी होनी चाहिए आप धर्म का अनुष्ठान भी करो तो उसमें धार्मिकता की झलक होना चाहिए। संस्कृति की झलक होनी चाहिए।उसमें परंपरा की झलक होना चाहिए और आप आधुनिकता यहां ले आए तो यह मंदिर भी पर्यटन स्थल बन जाएगा। इसीलिए आपको चाहिए की मंदिर में सादगी बनी रहे। आप बाहर कितना भी डिजाइन करके डेकोरेट करके अपने आप को ले जाओ। आप भगवान का कोई पर्व मनाने आए हैं तो आओ भगवत्ता की ओर,साधुता की ओर बढ़ाना चाहिए। आपकी वेशभूषा आपके हाव-भाव आपके आचरण धार्मिकता का प्रतीक होना चाहिए ना की फुहडता का, ना कि पाश्चात्य संस्कृति के, ना कि विलासिता के ऐसा फ्री किस काम का… जिसमें अपने भाई को बहन को ही देखने में शर्म आए… पहले के समय में वह निश्छल प्रेम था निस्वार्थ था उसमें दुआएं रहती थी इसलिए पर से प्रभावित होना पाप है उन्नति के नाम पर संस्कृति में विकृति खड़ी कर देना अपनी हार है लोग इसे उपहार मानते हैं लेकिन यह हार है। यह हमें उसे सात्विकता को बनाए रखना है तो उसके लिए वैसा आचरण स्वयं को भी रखना होगा और दूसरे से भी करना होगा। संस्कृति की रक्षा संस्कारों से ही संभव है। उक्त विचार अपने प्रवचन श्रृंखला में दिए।
श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन श्रावक संघ, श्री विद्या सिंधु महिला मंडल श्री विमल सन्मति युवा मंच एवं सकल दिगंबर जैन समाज के पदाधिकारी एवं सदस्य बड़ी संख्या में कथा का श्रवण कर रहे हैं उक्त जानकारी चंद्रप्रभ दिगंबर जैन श्रावक संघ संयोजक मांगीलाल जैन ने दी।