मन को बस में करना अच्छा है, मन के वश में नहीं होना- श्री अतिशयमुनिजी म.सा.

तपस्या के जबरदस्त ठाठ लगे हुए हैं

रतलाम, 15 जुलाई 2025। आचार्य श्री उमेशमुनिजी म.सा. के सुशिष्य धर्मदास गणनायक प्रवर्तक पूज्य श्री जिनेंद्रमुनिजी म. सा. की निश्रा में वर्षावास स्थल डी.पी.परिसर लक्कड़पीठा पर प्रतिदिन धर्मसभा हो रही है। मंगलवार को हुई धर्मसभा में पूज्य श्री अतिशयमुनिजी म.सा. ने मन की चंचलता को परिभाषित करते हुए इसे नियंत्रण में रखकर मोक्ष मार्ग पर अग्रसर होने की बात कही। उन्होंने फरमाया कि जीव का अंतिम स्थान मुक्तिधाम है। जहां सुख का अनुभव नहीं है, वह स्थान रहने लायक नहीं है।जीव भूतकाल से सिख लेकर वर्तमान सुधर सकता है और वर्तमान सही होगा तो भविष्य सुधरेगा। जीव को मन मिलने के बाद भी वह स्थिर नहीं रहता है, क्योंकि मन चंचल है। मन को बस में करना अच्छा है या मन के वश में होना अच्छा होता है? पाप क्रिया में जितनी वृत्ति, उतना मन चंचल और जितनी निवृत्ति उतना मन शांत होता है। मन का दुरुपयोग किया तो भविष्य में मन नहीं मिलने वाला है। भगवान ने सबसे बड़ा दुख जन्म- मरण का बताया है। हम छोटी सी बुद्धि में बहुत बड़ी कल्पना करते हैं। मन का उपयोग खुद के लिए किया तो नुकसान और आराधना के लिए किया तो अच्छा होगा। सम्यक प्राप्त हुआ किंतु उसे सुरक्षित रखते सम्यकत्व में दृढ़ता नहीं रखी तो वह टिकने वाला नहीं है। स्वयं का आकलन करना – हमारे मन के भाव शुद्ध है या अशुद्ध। जिनवाणी डराने के लिए नहीं है। इसके माध्यम से मनुष्य चिंतन कर सही-गलत का पता लगा सकता है। अपने मन, वचन, काया को शुभ में लगाने का प्रयास करें, हमें पछताने का मौका नहीं मिले ऐसा काम करें। जीवन में हमेशा सदाचार करें दुराचार का सेवन किया तो आने वाला भव खराब हो सकता है। जिनवाणी के माध्यम से अपने मन को जगाने का प्रयास करें यदि नहीं जागे और बिना श्रद्धा के हाथ से निकला तो अनंत काल तक बोधि (सही समझ) प्राप्त होना दुर्लभ है ।
रत्नपुरी गौरव श्री सुहासमुनिजी म.सा. ने फरमाया कि हम थोड़ी सी बुद्धि में बहुत बड़ी-बड़ी कल्पनाएं करते हैं। मन का उपयोग खुद के लिए किया तो नुकसान होगा और आराधना के लिए किया तो उत्थान । अपने मन को विचलित नहीं होने दे। मोक्ष मार्ग पर अग्रसर होने के लिए निरंतर पुरुषार्थ करें और इसके माध्यम से निरंतर मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ते जाएं। चातुर्मास समिति के मुख्य संयोजक व धर्मदास गणपरिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शांतिलाल भंडारी एवं श्री धर्मदास जैन श्री संघ के अध्यक्ष रजनीकांत झामर तथा महामंत्री विनय लोढ़ा ने बताया कि प्रवर्तक जिनेंद्रमुनिजी म.सा. के सानिध्य में यहां बड़ी संख्या में श्रावक, श्राविकाएं तपस्या कर रहे हैं। प्रभावना का लाभ वीर परिवार दिलीप उर्मिला गोलेछा परिवार ने लिया। संचालन अणु मित्र मंडल के मार्गदर्शक राजेश कोठारी ने किया।