तन के रोग मिटाने के लिए अस्पताल,तो मन के रोग मिटाने के लिए मंदिर है- साध्वी श्री शाश्वतप्रियाश्रीजी म.सा.

रतलाम 12 जुलाई । कभी-कभी यह भी प्रश्न उठता है, इतने सारे मंदिरों की आवश्यकता क्या है। शरीर के रोगों को मिटाने के लिए जिस तरह अस्पताल होते हैं, वैसे मन के लोगों को मिटाने के लिए यह मंदिर है।
यह उद्गार साध्वी श्री शाश्वतप्रियाश्रीजी म.सा. ने नीमवाला उपाश्रय में आयोजित प्रवचन में कहे। उन्होंने कहा कि राग का आवेश, द्वेष का आवेश, कषायों का आवेश जब मन में आता है, तो उसके रोगों को दूर को करने के लिए मंदिर है। शास्त्रों में जैसे साधु -साध्वी के लिए लिखा गया है, वैसे ही श्रावको के लिए भी लिखा गया है। परमात्मा ने श्रावक- श्राविका की श्रेणी बताई है। उस अनुसार आचरण करने वाला ही सच्चा श्रावक होता है ।
साध्वी श्री ने कहा कि जो मिथ्यात्म में होता है, जिसका आध्यात्म में थोड़ा भी मन नहीं लगता है, जिसे देवगुरु की आराधना से कोई रिश्ता नाता नहीं है और खाओ पियो और मजा करो, यह जिसकी मान्यता बनी है, ऐसे जीव धर्म के हितैषी नहीं होते है। साधुओं के पास जो सतत सामाचारी का श्रवण करता है, उसको श्रावक कहा जाता है। श्रावक के लिए कहा गया है कि उसका तन संसार में होता है और मन संयम में। वस्त्र शुद्धि दर्शन के लिए भी आवश्यक है। हर किसी वस्त्र को पहनकर मंदिर नहीं जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि पग में पहना हुआ चप्पल निर्दयता का, निष्ठुरता का, कठोरता का प्रतीक होता है। श्रावक के रूप में नंगे पैर चलेंगे, तो जमीन पर स्वयं देखकर चलेंगे। जाव अपनी सुरक्षा के लिए हम देख कर चलते हैं, तो जीवों की भी रक्षा हो जाती है।रविवार को प्रातः 8.बजे वरघोड़ा निकलेगा | इसमें 45 आगम को संघ महानुभाव की उपस्थिति में विभिन मार्गो का भ्रमण कराकर नीम वाला उपाश्रय मे लाया जाएगा । महाभारत ग्रन्थ, पांडव चरित्र एवं अभिधान राजेंद्र कोष भाग 3, शब्द औचित्य आदि को संघ की उपस्थिति मे वोहराया जाएगा ।