कड़वा ही लाभकारी होता है

– प्रो. डी.के. शर्मा

प्रातः बगीचे में गिलोय का रस पीया। ज्ञानचक्षु खुल गए। गिलोय कड़वा होता है। गिलोय को अमृता भी कहते हैं। अमृता इसलिए कि गिलोय में हजार गुण होते हैं। शरीर का जहर समाप्त कर देती है। गिलोय शरीर का कायाकल्प कर देती है। शरीर की अनेक अशुद्धता समाप्त कर देती है। समझ में आया जो कड़वा होता है वही लाभकारी होता है। इसी से याद आई माता-पिता की डांट। सबको यह प्रसाद मिला होगा। जब डांट पड़ती थी तब कितना बुरा लगता था? बहुत वर्षों बाद बात समझ में आई- डांट कड़वी लगती है किन्तु होती बहुत लाभकारी। हम जब अपने बच्चों को डांटते हैं तो उनको भी बुरा लगता है। बचपन में हमको भी बुरा लगता था। अब समझ में आया कि माता-पिता की डांट बहुत लाभकारी होती है। शिक्षकों की निस्वार्थ डांट असीम लाभकारी रही। उनकी डांट रूपी कृपा से ही जीवन सार्थक हो गया, ज्ञान प्राप्त हो गया। जीवन की जितनी भी उपलब्धियां हैं सब शिक्षकों की निस्वार्थ डांट से ही हैं। तब कड़वी लगती थी, अब मिठास भरी याद आती है। जब अच्छे नंबरों की मार्कशीट लेकर शिक्षकों के पास जाते थे तब हम से अधिक प्रसन्न हमारे शिक्षक होते थे। हमारे जमाने में ट्यूशन की बहुत परिपाटी नहीं थी। स्कूल में ही इतना पढ़ा दिया जाता था कि ट्यूशन की आवश्यकता नहीं लगती थी। अब तो बहुत छोटी क्लास के बच्चों की भी ट्यूशन करनी पड़ती है।
बात करें साधु-संतों की डांट की- कई संतों के प्रवचन शब्दों से बहुत कड़वे होते हैं किन्तु अनन्त लाभकारी। साधु संत ही समझाते हैं- जो सबकुछ जीवन में अच्छा लगता है वह कितना हानिकारक होता है और जो कड़वा लगता है वह अनंत लाभकारी होता है। अब जो ज्ञान दिया जाता है उसका उद्देश्य केवल एक – धन कमाना। वर्तमान समाज में धन ही सफलता का माप दण्ड है। धन है तो असंख्य दुर्गुण क्षमा। गुणी गरीब की आज के समाज में कोई प्रतिष्ठा नहीं। समय परिवर्तनशील है और सफलता असफलता के आंकलन समय – समय पर अलग-अलग प्रकार से होते रहते हैं। राम और कृष्ण को मिली शिक्षा वर्तमान में निरर्थक है। महावीर और बुद्ध के ज्ञान से दुनियादारी में कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता। उसका महत्व तो ज्ञानमय वैराग्य प्राप्त होने पर ही समझ में आता है।
श्रम करना भी बहुत अप्रिय लगता है, परन्तु हम भुल जाते हैं कि श्रम से ही सोना चमकता है। निरर्थक लोहा मूल्यवान वस्तु में परिवर्तित हो जाता है। श्रम करके सफलता की ऊंचाईयों पर पहुंचने के बहुत उदाहरण हमारे सामने हैं। मालवा का एक लड़का यहां की ठंडक छोड़कर अरब की गर्मी में जाकर कमल से कंचन हो गया। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। ज्ञान ही व्यक्ति को कंचन बनाता है।
कष्ट का भी जीवन में महत्व है। कष्ट मनुष्य को संवेदनशील बनाते हैं, उदार बनाते हैं। जिस व्यक्ति ने कष्ट उठाये हो वहीं दूसरों के कष्ट को समझ सकता है। जिसने स्वयं कोई कष्ट नहीं उठाये हों वह दूसरों के कष्ट को नहीं समझ सकता। संवेदनशीलता ही मनुष्य को मानव बनाती है जिसे अंग्रेजी में ‘ह्यूमन बीईंग’ कहते हैं। जब हृदय संवेदनशील हो जाए तो समझीये जीवन सार्थक हो गया। भावनाहीन अनुदार व्यक्ति का जीवन निरर्थक है। आधुनिक युग अर्थ प्रधान है। ऐसा माना जाता है कि धन ही सबकुछ है। सच भी है, धन है तो सब संभव है। निर्धन का जीवन निरर्थक किन्तु मानवीय भावना हीन व्यक्ति का जीवन भी निरर्थक होता है।