भारत में राजनीति का गिरता स्तर

लेखक – प्रो. डी.के. शर्मा, रतलाम

राजनीति के दांव पेंच प्रजातंत्र के आवश्यक अंग हैं। वैसे कोई भी शासन प्रणाली हो समर्थन – विरोध – दांव पेंच चलते ही रहते हैं। राजनीति का प्रत्येक शातिर खिलाड़ी सत्ता पाना चाहता है। राजशाही में सत्ता पाने के लिए हत्या तक की जाती थी। वैसे कई प्रजातांत्रिक देशों में भी हत्या होती है। अपने प्रजातंत्र पर गर्व करने वाले देश अमेरिका में कई राष्ट्रपति की हत्या हुई। वर्तमान में भारत में कई राजनैतिक दल सत्ता प्राप्ति के लिए प्रयासरत हैं- कुछ राष्ट्रीय, कुछ प्रांतीय। प्रजातंत्र को सर्वोत्तम शासन पद्धति माना जाता है। अमेरिका के प्रसिद्ध राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने प्रजातंत्र की सर्वोत्तम परिभाषा दी है। उन्होंने कहा “नागरिकों की, नागरिकों के लिए, नागरिकों को द्वारा सरकार।” इंग्लैण्ड के सबसे प्रसिद्ध- शातिर द्वितीय विश्व युद्ध कालीन प्रधानमंत्री विन्स्टन चर्चिल ने प्रजातंत्र के बारे में कहा कि प्रजातंत्र इतिहास की सबसे अच्छी शासन प्रणाली है। प्रजातंत्र की सफलता नागरिको के व्यवहार और देश के प्रति निष्ठा से निर्धारित होती है। सफल प्रजातंत्र की एक प्रमुख आवश्यकता है कि सभी प्रतिद्वंदी राजनैतिक दल अच्छे स्तर की राजनीति करें। दलगत-व्यक्तिगत-स्वार्थ को प्रमुखता नहीं दी जानी चाहिए। विचार करें हमारे देश में राजनैतिक आचरण की स्थिति कैसी है?
वर्तमान में भारत में दो प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी है। आप भी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी हो गई है। ओवेसी की AIMIM भी कई राज्यों में चुनाव लड़ने लगी है। इनके अतिरिक्त कई प्रांतीय दल हैं जिनका कार्यक्षेत्र एक राज्य तक ही सीमित है। प्रमुख प्रांतीय दल- समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी (उत्तर प्रदेश), तृणमूल कांग्रेस (पश्चिम बंगाल), आंध्र प्रदेश की पार्टी तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी), जनसेना पार्टी (जेएसपी), तेंलगाना की पार्टियां वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी), तमिलनाडु की पार्टिया – द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीऍमके) और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआइऍमडीऍमके) हैं।
सभी राजनैतिक दलों के लिए देश का विकास – उन्नति-सशक्तिकरण मूल उद्देश्य होना चाहिए। हमारे देश में वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करें तो परिणाम में निराशा प्राप्त होती है। जिस तरह की निम्न स्तर की प्रतियोगिता हो रही है देशहित में नहीं है। कोई भी सत्ता से बाहर दल देशहित की चिंता नहीं कर रहा। कुछ दल का सत्ता में रहते हुए भी रिकॉर्ड बहुत खराब रहा है। उन्होंने देश हित की कभी चिंता नहीं की, चिंता की तो केवल सत्ता में बने रहने की। प्रयास किया तो सत्ता में रहने के लिए केवल एक धर्म विशेष के लोगों को खुश करके उनके वोट पाने का। इन नेताओं ने स्वयं अपने धर्म और देश की भी चिंता नहीं की। उद्देश्य केवल एक – सत्ता प्राप्ति, किसी भी तरह सत्ता प्राप्ति।
स्वतंत्रता के बाद लम्बे समय तक सत्ता में रही कांग्रेस के वर्तमान नेता राहुल गांधी सत्ता के बाहर होने से बहुत तिलमिलाये हुए हैं। हताशा-निराशा में वे अपना विवेक भी खो चुके हैं। विदेशों में देश विरोधी बयान देते रहते हैं। सबको पता है कि राहुल देश और सरकार के बीच का अंतर नहीं समझ रहे। सरकार की आलोचना करने का अधिकार सभी विरोधियों को है किन्तु देश का विरोध नहीं करना चाहिए। राहुल समझते हैं कि वे सत्ता में नहीं तो देश भी बेकार, इसमें सबकुछ गलत। अखिलेश यादव में भी सत्ता खोने की निराशा उनके व्यवहार में स्पष्ट दिखाई देती है। इस निराशा में वे अपने धर्म की भी आलोचना करने लगे हैं। दुर्भाग्य से हिन्दू धर्म ही ऐसा धर्म है जिसके अनुयायी अपने धर्म की आलोचना करते हैं, अपमान करते हैं। ऐसे लोग सत्ता प्राप्ति के लिए अन्य धर्म के लोगों की चाटुकारिता करते हैं।
पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी मुस्लिम अल्पसंख्यक के भरोसे ही लम्बे समय से चुनाव जीतती आ रही है। उनके जैसे राजनीति करने वाले अल्पसंख्यकों के भरोसे ही चुनाव जीतते रहते हैं। अखिलेश भी यही करते हैं। उनकी समाजवादी पार्टी मुसलमानों के भरोसे ही चुनाव जीतती रही है। अखिलेश के पिता ने यह चालाकी प्रारंभ की थी इसी कारण लोग उन्हें मियां मुलायम कहने लग गए थे। उन्होंने यूपी के कुख्यात मुस्लिम गुंडों को संसद और राज्यसभा के सदस्य बनावा दिये थे। ऐसे लोगों के लिए व्यक्तिगत स्वार्थ देश और धर्म के लाभ से अधिक महत्वपूर्ण होता है।
किसी भी देश की प्रजातंत्र का स्तर उस देश में राजनीति करने वालों के व्यवहार और चरित्र से होता है। दुर्भाग्य से हमारे देश में राजनीति का स्तर बहुत निम्न हो गया है। उनका व्यवहार व्यक्तिगत आकांक्षाओं की पूर्ति से निर्धारित होता है। उन्हें सत्ता मिले तो सब ठीक अन्यथा सब गलत। स्पष्ट है कि हमारे यहां राजनीति का स्तर बहुत निम्न है। अधिकतर प्रांतीय दलों को देश की शांति सुरक्षा और विकास की कोई चिंता नहीं। वे परिवारवाद एवं जातीवाद के आधार पर सत्ता प्राप्त कर सत्ता सुख भोगना चाहते हैं।