“कुमार सीदार्थ की वाल से”
महात्मा गांधी के जीवन और कार्य में साबरमती आश्रम का विशेष महत्व है। यह वह स्थान है, जिसे गांधीजी ने स्थानीय सामग्री का उपयोग करके स्वयं स्थापित किया था। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय यहीं बिताया और स्वतंत्रता संग्राम के आठ प्रमुख आंदोलनों की शुरुआत इसी आश्रम से हुई। लगभग सौ वर्ष पूर्व गांधीजी ने इसे अपना घर बनाया था, और आज यह आश्रम उनके जीवन दर्शन और सिद्धांतों का जीवंत प्रमाण बना हुआ है।
आश्रम का मेरा अनुभव
हाल ही में, दिसंबर के अंत में, मैंने अपने परिवार (पत्नी, बेटा बहू, बिटिया) के साथ आश्रम का भ्रमण किया। यद्यपि मैं इस आश्रम का दसियों बार भ्रमण कर चुका हूँ, फिर भी हर बार यहां आकर कुछ नया जानने और समझने का अवसर मिलता है। लेकिन इस बार आकर देखने को मिला है कि आश्रम में एक नई चकाचौंध नजर आने लगी है, जिससे इसकी मूल सादगी कहीं खोती प्रतीत होती है।
सात्विक केंद्र से पर्यटन स्थल में तब्दील होता आश्रम
अब आश्रम का स्वरूप धीरे-धीरे बदल रहा है। यह केवल आध्यात्मिक/ सात्विक स्थल न रहकर एक प्रमुख पर्यटन केंद्र बनता जा रहा है। केंद्र और राज्य सरकारें इसे एक विश्वस्तरीय आकर्षण के रूप में विकसित करने के लिए जुटी हैं। गांधी आश्रम को पर्यटन स्थल में बदलने की इस प्रक्रिया से आश्रम की गरिमा को ठेस पहुंचेगी।
पुनर्विकास: विरासत के नाम पर व्यावसायीकरण?
साल 1930 में, आश्रम और उसके आसपास 50 एकड़ से अधिक भूमि पर स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाएं हुई थीं। लेकिन वर्तमान में, आश्रम केवल 5 एकड़ भूमि तक सीमित है, जो बढ़ती पर्यटक संख्या को देखते हुए अपर्याप्त प्रतीत होती है। ऐसे में पुनर्विकास परियोजना के तहत सरकार की योजना है कि:
* आश्रम का विस्तार 55 एकड़ तक किया जाएगा।
* वास्तविक आश्रम के चारों ओर 322 एकड़ भूमि को गांधीवादी मूल्यों के अनुरूप विकसित किया जाएगा।
* सरकार 36 इमारतों का जीर्णोद्धार करेगी, जिसमें 20 पुराने भवनों का संरक्षण, 13 भवनों का कायाकल्प और 3 इमारतों का पुनर्निर्माण होगा।
* इस परियोजना पर लगभग 1200 करोड़ रुपये का खर्च अनुमानित है।
* क्या यह परियोजना गांधीजी की सादगी के मूल विचार को बरकरार रख पाएगी, या इसे एक व्यावसायिक पर्यटन केंद्र के रूप में ढाल दिया जाएगा?
आश्रमवासियों का विस्थापन
पुनर्विकास परियोजना के अंतर्गत, वर्षों से आश्रम परिसर में रह रहे 250 परिवारों का पुनर्वास किया गया है। सभी परिवारों को अन्य स्थानों पर स्थानांतरित कर दिया गया है, ताकि यहां नई इमारतों का निर्माण किया जा सके। लेकिन क्या इन परिवारों को वास्तव में उनकी जड़ों से अलग किए बिना कोई और विकल्प नहीं था?
क्या आधुनिकता में खो जाएगा आश्रम का अस्तित्व?
गांधीजी का विचार था कि आश्रम सादगी, अहिंसा और आत्मनिर्भरता का प्रतीक हो, लेकिन इसे एक आकर्षक पर्यटन स्थल में बदलने से उनकी मूल भावना खतरे में पड़ेगी। गांधी आश्रम दुनिया भर के करोड़ों लोगों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। भव्य स्वरूप देने की योजना के बावजूद, यह सवाल बना रहेगा कि क्या गांधीजी की आत्मा इस बदलते स्वरूप में जीवित रह पाएगी?
साबरमती आश्रम का पुनर्विकास एक महत्त्वाकांक्षी योजना है, जो गांधीजी की विरासत को संरक्षित करने का दावा करती है। लेकिन जब करोड़ों रुपये खर्च कर आधुनिक इमारतें बनाई जाएंगी, तो क्या यह गांधीजी के मूल्यों के अनुकूल होगा, या फिर यह एक महज व्यावसायिक परियोजना बनकर रह जाएगी?