हमारे धर्मग्रंथों में इतने शक्तिशाली मंत्र, जो हमें हर तरह की विपत्ति से बचा सकते हैं

 हमारे धर्मग्रंथों में इतने शक्तिशाली मंत्र, जो हमें हर तरह की विपत्ति से बचा सकते हैं !

रेडिसन चौराहा स्थित दिव्य शक्तिपीठ पर सात दिवसीय ज्ञान यज्ञ में स्वामी लोकेशानंद के आशीर्वचन

इंदौर,। समुद्र मंथन की तरह हमें अपने जीवन में भी मनन और मंथन करते रहना चाहिए, ताकि अच्छे और बुरे विचारों की छंटनी हो सके। समुद्र मंथन का प्रसंग हमारे लिए सबक है, जो यह संदेश देता है कि जीवन को सार्थक बनाने के लिए अच्छे और बुरे की पहचान होना चाहिए। हमारे पुराणों और धर्मग्रंथों में इतने शक्तिशाली मंत्र मौजूद हैं, जो हमें जीवन की सारी विपत्तियों से मुक्त बना सकते हैं। जितने समृद्ध भारत के धर्मग्रंथ हैं, शायद ही दुनिया के किसी ओर के धर्मग्रंथ होंगे। भारतीय संस्कृति में हर बात का आधार और प्रमाण होता है।
ये प्रेरक विचार हैं श्रीनारायण भक्ति पंथ के प्रमुख स्वामी लोकेशानंदजी महाराज के, जो उन्होंने गुरुवार को एमआर-10, रेडिसन चौराहा स्थित दिव्य शक्तिपीठ के सभागृह में आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ में गजेन्द्र मोक्ष, समुद्र मंथन और 24 अवतारों की कथा के प्रसंग पर व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व समाजसेवी दुर्गेश-निशा अग्रवाल, नितिन अग्रवाल, महेन्द्र अग्रवाल एवं आयोजन समिति के संतोष अग्रवाल, भारत मीरचंदानी, प्रसन्ना चांडक, सीताराम मित्तल, मणिकांत गुप्ता, मनीष गोयल एवं संजय गर्ग ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा का यह दिव्य अनुष्ठान 29 सितम्बर तक प्रतिदिन दोपहर 3 से 6 बजे तक दिव्य शक्तिपीठ के सभागृह में जारी रहेगा। यहां कथा के साथ 51 विद्वान भी भागवत का मूल पारायण कर रहे हैं। श्राद्ध पक्ष में इतने विद्वानों द्वारा मूल पाठ एवं भागवत की स्थापना का शहर में यह पहला आयोजन हो रहा है।
स्वामी लोकेशानंद ने कहा कि कमल के फूल की रचना ब्रह्मा ने नहीं की है। कमल का पुष्प सबसे पुराना और पद्मनाभ अर्थात भगवान की नाभि से उत्पन्न हुआ पुष्प है। यह देवताओं को सर्वाधिक प्रिय पुष्प है। ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की, उस समय कमल का फूल पहले से मौजूद रहा। इसी तरह गजेन्द्र मोक्ष प्रसंग पर स्वामी लोकेशानंद ने कहा कि जब गजेन्द्र नामक हाथी को मगरमच्छ ने जकड़ लिया था, तब उसकी रक्षा के लिए कोई नहीं आया था। यह कथा यह संदेश भी देती है कि मृत्यु के समय कोई साथ देने वाला नहीं है। केवल परमात्मा ही साथ दे सकता है। गजेन्द्र मोक्ष के प्रसंग में जब गजेन्द्र नामक गज ने भगवान को सच्चे मन से मदद के लिए पुकारा तो गरूड़ पर सवार होकर भगवान नारायण तुरंत दौड़े चले आए और अपने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ की गर्दन कार दी। इस तरह भक्त द्वारा पुकारने पर भगवान दौड़े चले आते हैं, भले ही उनका नाम भी न लें। वे जानते हैं कि उनका भक्त किस मुसीबत में है।